autobiography of coin in Hindi
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Explanation:
मैं सिक्का हूं, मुझे तो पहचानते ही होंगे आप। क्यों नहीं?? बिल्कुल पहचानते होंगे, ना पहचानने वाली बात ही नहीं है!!
मुझे तो देखा ही है आपने, आपके जीवन में हमेशा रहा हूं आपके आसपास। दरअसल मैं अपना परिचय कुछ इस प्रकार देना चाहूंगा कि, मैं एक मुद्रा हूं, मुद्रा के कई रूपों में से एक हूं मैं। मनुष्य मुझे कई नामों से पुकारता है, कभी कोई छुट्टे पैसे बोलता है, तो कोई चिल्लर, तो कोई खरेज़ कह कर बुलाता है।
मैं बड़े काम की चीज हूं, जाहिर सी बात है, मैं मुद्रा हूं, मेरे बिना तो काम चल ही नहीं सकता है। ऐसे अनेकों काम है जो मेरे बिना असंभव है। मेरे बिना चीजों की खरीद-फरोख्त तक नामुमकिन है। प्राचीन काल में लोग सोने एवं चांदी तथा लोहे के सिक्के भी प्रयोग में लाते थे।
वह तो युग ही अलग था। सभी चीजों का आदान प्रदान सिक्कों द्वारा ही होता था, क्या शान हुआ करती थी तब उस वक्त पर!! आज के दौर में इतनी मूल्यवान धातु से मुझे नहीं बनाया जाता है, और वैसे भी आजकल तो कागज के नोट ज्यादा लोकप्रिय है, सभी लोग नोटों को ज्यादा महत्व देते हैं, हालांकि उन्हें यह नहीं पता है कि सिक्कों से मिलकर ही एक नोट बनता है।
तभी मेरी कीमत का पता चलता है जब खुले पैसे या छुट्टे पैसे चाहिए होते हैं, उनकी जरूरत पड़ती है। पर मैं कभी भी हीन भावना महसूस नहीं करता हूं, क्योंकि मेरी एक अलग शख्सियत है।
तो बेशक मेरी खनक से ही सब का बटुआ और जेबे भरी भरी रहती है। सिक्के की अर्थात मेरी तो महिमा एवं चरित्र ही अलग है। मैं कहीं भी किसी भी छोटी से छोटी जगह में समा जाता हूं और उतना ही मूल्यवान भी रहता हूं।
मुझे देख कर ही बच्चों का मन बहल जाता है। मेरे मोह के कारण एक रोता हुआ छोटा बच्चा चुप हो सकता है। मेरी देह की चमक एक उदास बच्चे के चेहरे पर चमक ला सकती है।
मेरी भी एक अलग ही लोकप्रियता है, मुझे देख कर ही बच्चों के चेहरे पर खुशी आ जाती है, मैं छोटे नन्हे बालक एवं बालिकाओं का चहेता भी हूं और उनकी खुशी का कारण भी।
इन सब के अलावा, इन सब के उपरांत, एक चीज, एक बिंदु जिससे मैं बहुत रूबरू रहता हूं, वह है – यात्रा!! जी हां, मुझसे पूछिए कि मैंने कहां की यात्रा नहीं की हुई है, कौन सी ऐसी जगह है जो मेरे अस्तित्व से अनछुई है।
क्योंकि खरीद-फरोख्त के दौरान सिक्कों का प्रयोग होता है, इस कारण से मैं एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता ही रहता हूं, कभी ठहरता नहीं हूं, मेरे चरित्र में ही नहीं है ठहरना या एक जगह रुकना। मैं बस सफर करता जाता हूं, करता जाता हूं, बस चलता ही रहता हूं!! देश के एक कोने से दूसरे कोने में, कब कैसे कहां पहुंच जाता हूं यह बात खुद मेरे लिए अदभुत है।
कभी किसी अमीर के पास होता हूं, कभी किसी मध्य वर्गीय के पास, तो कभी किसी गरीब के पास। लोग मुझे दान करना भी पसंद करते हैं, मैं भिखारी और फकीर लोगों के पास भी पाया जाता हूं।
मेरी खनक मेरे शोर से काफी लोगों को सुकून मिलता है, पैसे की खनक किस को बुरी लगती है भला!! पर आज के युग में इसी पैसे ने अपनों को भी सब उसे दूर कर दिया है, पैसे के लालच में इंसान क्या कुछ कर जाता है।
ना अपने देखता है, और ना पराए। धोखा, फरेब, मारपीट, खून, कत्ल सब कुछ संभव है!! बस इस मुद्रा, इन पैसों के कारण। आज मनुष्य ने पैसों को ही अपना भगवान बना लिया है, पैसे के आगे मनुष्य कुछ भी नहीं देखता है, हर गलत काम कर जाता है, पैसे के चक्कर में मनुष्य पागल तक हो जाता है। आज के दौर में पैसा ही मां बाप भाई बहन सब कुछ है।
पर मनुष्य जानता नहीं है कि पैसे को बहुत सर चढ़ाने से बहुत कुछ नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं। आज पैसे से अति प्रेम के कारण ही इंसान के जीवन में इतने ग़म घुल चुके हैं, ना इंसान को वक्त का पता है, ना अपनी सेहत का होश है, बस पैसे कमाने में लगा पड़ा है। एक दिन इसी पैसे से अति लगाव सब कुछ खत्म भी कर सकता है। मनुष्य इस बात को जितना जल्दी समझ ले उतना अच्छा।
मनुष्य को पैसे से ज्यादा अहमियत अपने रिश्तेदार या बाप भाई बहन, अपने वक्त और अपनी सेहत को देनी चाहिए ना की इन कागज के नोटों को!! पर बेचारा इंसान करें भी तो क्या, जब सारी दुनिया ही पैसे के दम पर चल रही है तो वह पैसे के पीछे क्यों नहीं भागेगा, पैसे से ही आज के युग में सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध हो पाती हैं। पर इन दिखावटी सुख सुविधाओं की वजह से मनुष्य अपने जीवन में दुख घोलता जा रहा है, इंसान को संभलना होगा वरना बहुत देर हो जाएगी।
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में एक सिक्का हू | सदियों पूर्व मेरे पूर्वज शैव की साज्ञ से विभूषित किये जाते थे|चांदी के बाद निकला तांबा रांगा आदि से निर्मित सिक्कों की pidhiya में अब पुरानी पड़ चुकी है |
oh god!! i tried my best.......
thanku.....