Autobiography of dry tree in hindi
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sookhe vriksha ki aatmakatha
जैसे-जैसे समय बीत रहा था मैं भी बूढ़ा हो रहा था और मेरी कुछ शाखाएं सूखने भी लगी थी लेकिन उनकी जगह नई शाखाएं भी आ रही थी. मेरा जीवन अच्छा व्यतीत हो रहा था.लेकिन कुछ मेरी मोटी टहनियों को देखकर मुझे काटने का विचार करने लगे यह देख कर मुझे बहुत ही दु:ख हुआ कि मैंने जीवन भर इंसानों को सब कुछ दिया लेकिन आज ये अपने स्वार्थ के लिए मुझे काटना चाहते है. कुछ दिन बाद ही कुछ लोग आए और मुझे काटने लगे मुझे बहुत ही पीड़ा हो रही थी लेकिन मैं अपनी पीड़ा जाहिर भी तो नहीं कर सकता था और ना ही कटने से बचने के लिए भाग सकता था. फिर भी इंसानों ने अपने थोड़े से स्वार्थ के चलते हमें काट दिया. इस बात को लेकर हम पेड़ों को बहुत दुख होता है. लेकिन शायद इंसान की सोच ऐसी ही होती है कि जब तक किसी से कुछ मिलता रहे तब तक तो उसे पूछते हैं और जब मिलना बंद हो जाता है तो उसे ठुकरा देते है.
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि मैं गलत था जानवर हमें खा जाएंगे और मैं जानवरों से डरता था लेकिन बड़े होने पर समझ में आया कि हमें जानवरों से नहीं इंसानों से खतरा है.
मैं पेड़ आप सभी से निवेदन करना चाहूंगा कि आप हम पेड़ों को काटे नहीं और ज्यादा से ज्यादा लगाएं जिससे हम इस पृथ्वी को और खुशियों से भर दे.