autobiography of great personality in hindi
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शेरशाह का प्रारम्भिक जीवन बाबर और अकबर से कम रोमांचकारी नहीं था. बचपन में शेरशाह का नाम फरीद खां था. उसके शेरशाह के पिता का नाम हसन खां और दादा का नाम इब्राहीम खां था. इब्राहिम खां घोड़े का व्यापार करता था. परन्तु भाग्य का मारा इब्राहिम खां व्यापार में सफल नहीं हो सका. उस समय भारत विभिन्न व्यक्तियों के लिए आश्रय का स्रोत माना जाता था. इसलिए वह नौकरी की तलाश में अफगानिस्तान से भारत आया. कालान्तर में इब्राहीम का पुत्र हसन खां सुल्तान बहलोल लोदी का दरबारी बन गया और उसे जागीर भी दी गई. फरीद खां उर्फ़ शेरशाह का जन्म 1472 ई. में हसन खां की पहली अफगान पत्नी से हुआ था. हसन खां अपनी नयी पत्नियों पर अधिक मेहरबान था इसलिए पिता की उदासीनता और सौतेली माँ की दुष्टता के चलते फरीद का बचपन संकट में व्य्तीं होने लगा.
तंग आकर शेरशाह 39 वर्ष की आयु में घर छोड़कर जौनपुर चला गया. जौनपुर आना फरीद के लिए वरदान साबित हुआ. जौनपुर विद्या का केंद्र था. फरीद ने परिश्रम करके अरबी और फारसी भाषा सीख ली. बाद में पिता के साथ उसके सम्बन्ध फिर अच्छे हो गए. उसके पिता ने उसको सहसराम और ख्वासपुर परगनों के शासन का भार सौंपा. कुछ ही दिनों में शेरशाह ने परगना के शासन को सुव्यवस्थित कर दिया. उसके पिता उससे बहुत प्रसन्न हुए. पर फरीद की विमाता के लिए ये सब असह्य हो गया. अपनी पत्नी के बातों में आकर फरीद के पिता ने अपने बेटे को सहसराम से निष्काषित कर दिया गया.