Hindi, asked by madhurichourasiya17, 4 months ago

अविरत दुख है उत्पीड़न अविरत सुख भी उत्पीड़न सुख-दुख की निशा देवा में सोता जगता जगजीवन । यह सांझ-उषा का आँगना आलिंगन विरह-मिलन का चिर हास अश्रुमय आनन रे इस मानव जीवन का
भावार्थ लिखिए​

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Answered by nancychaterjeestar29
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Answer:                          सुख-दुःख

                           कवी:- सुमित्रानन्दन पंत

अविरत दुःख है उत्पीड़न,

अविरत सुख भी उत्पीड़न;

दुःख-सुख की निशा-दिवा में,

सोता-जगाता जग-जीवन!  यह सांझउषा का आँगन,  आलिंगन विरहमिलन का;  चिर हासअश्रुमय आँगन  रे इस मानव जीवन का!  

भावार्थ:--

यहाँ कवी कहना चाहते है की बहुत दुःख दर्द देता ह। परन्तु बहुत सुख भी दर्द देता ह।

 मनुष्य के जीवन में सुख और दुःख आते रहता ह।

सुख और दुःख मनुष्य के जीवन का सदस्य है।

मनुष्य के जीवन में सुख भी है और दुःख भी है।

हमें यह मान लेना चाहिए की सुख और दुःख हमारे जीवन का हिस्सा है , और हमे हमेशा सुख और दुःख का सामना करना चाहिए।

  मुझे हमेशा सुख नाही चाहिए हमेशा दुःख भी नहीं चाहिए जीवन परिपूर्ण होने दोनो भी आते रहे जाते रहे

#SPJ2

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