अविठात नाथ निरंजन देवा ।
मैं का जानूं तुम्हरि सेवा ।।
बांधू न बधब ऊँ न छाया , मही सेऊं निरंजन राया।
चरन पताल सीस असमाना , सौ ठाकुर कैसे संपत्रि समाना
सिव सनकादिक अंत न पाया, खोजत ब्रह्मा जनम गंवाया.
तो न पाती पूनर्जी न देवा , सहज समाधि की हरि सेवा
नय प्रसेद नाकै सुरसुरी थारा , शैमावती अलारतु भारा
चारि बैत माकै भुमत सासा, देत गावै रवासा. summary please
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