Biology, asked by Jrajesh8471, 11 months ago

अवशोषित जल की मात्रा से अधिक वाष्पोत्सर्जन होने का पादप पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Answers

Answered by gardenheart653
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वाष्पोत्सर्जन के लिए प्रायः कहा जाता है कि वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक खोट है। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि वाष्पोत्सर्जन क्रिया पौधों के लिए उपयोगी हो सकती है लेकिन इसकी अनुपयोगितायें भी कम नहीं हैं। पौधों में जल तथा लवणों का अवशोषण व पत्तियों का शीतन कुछ स्तर तक वाष्पोत्सर्जन की अनुपस्थित में भी हो सकता है। अतः तुलनात्मक रूप से पौधों के लिए वाष्पोत्सर्जन एक अहितकारी क्रिया ही है। लेकिन पौधे इसका नियंत्रण नहीं कर सकते। हैं। अतः जब कभी पर्णरन्ध्र खुले हुए होंगे जो कि प्रकाश संश्लेषण में गैसीय विनियम के लिए आवश्यक है, रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन होगा। गैसीय विनिमय तथा रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन को अलग नहीं किया जा सकता है। अतः पौधे चाहते हुए भी वाष्पोत्सर्जन के अभिशाप से मुक्त नहीं हो जाते। हैं। यही कारण है कि कर्टिस ने वाष्पोत्सर्जन को अनिवार्य अहित तथा स्टीवर्ड ने इसे अपरिहार्य अहित या बुराई कहा है।

वास्तव में पत्ती की सामान्य संरचना गैसीय विनियम के अनुरूप निर्मित है, जबकी वाष्पोत्सर्जन की क्रिया केवलं प्रसंगवश इस संरचना के युक्तियुक्त है। यह क्रिया पौधों के अस्तित्व के लिए किसी प्रकार से भी जीवनोपयोगी नहीं है। प्रतिवर्ष लाखों पौधों की अत्यधिक वाष्पोत्सर्जनके अभिशाप के कारण मृत्यु हो जाती है। वर्ष में अनेक समय ऐसी परिस्थितियाँ प्रस्तुत होती हैं, जबकी अवशोषण की दर अत्यधिक की दर निम्न हो जाती है। लेकिन वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है। फलस्वरूप तीव्र जल न्यूनता की स्थिती के उत्पन्न हो जाने से पौधों को जीवन से हाथ धोना पड़ता है। पुनः वाष्पोत्सर्जन के खतरों से सावधान रहने के लिए पौधों को आवश्यक रूप से अतिरिक्त जल अवशोषण हेतु विशेष व्यवस्थाओं रखनी पड़ती है जिसमें इनकी कुछ ऊर्जा का व्यय तो अवश्य ही होता है, जो नितान्त अर्थहीन है। इतना सब कुछ होने के बाद भी यह क्रिया अपरिहार्य है, अर्थात् पौधे चाहते हुए भी इससे मुक्त नहीं हो सकते।

Answered by ygviswak11
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Answer:

Explanation:

उत्तर– वाष्पोत्सर्जन के लिए प्रायः कहा जाता है कि वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक खोट है। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि वाष्पोत्सर्जन क्रिया पौधों के लिए उपयोगी हो सकती है लेकिन इसकी अनुपयोगितायें भी कम नहीं हैं। पौधों में जल तथा लवणों का अवशोषण व पत्तियों का शीतन कुछ स्तर तक वाष्पोत्सर्जन की अनुपस्थित में भी हो सकता है। अतः तुलनात्मक रूप से पौधों के लिए वाष्पोत्सर्जन एक अहितकारी क्रिया ही है। लेकिन पौधे इसका नियंत्रण नहीं कर सकते। हैं। अतः जब कभी पर्णरन्ध्र खुले हुए होंगे जो कि प्रकाश संश्लेषण में गैसीय विनियम के लिए आवश्यक है, रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन होगा। गैसीय विनिमय तथा रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन को अलग नहीं किया जा सकता है। अतः पौधे चाहते हुए भी वाष्पोत्सर्जन के अभिशाप से मुक्त नहीं हो जाते। हैं। यही कारण है कि कर्टिस ने वाष्पोत्सर्जन को अनिवार्य अहित तथा स्टीवर्ड ने इसे अपरिहार्य अहित या बुराई कहा है।

वास्तव में पत्ती की सामान्य संरचना गैसीय विनियम के अनुरूप निर्मित है, जबकी वाष्पोत्सर्जन की क्रिया केवलं प्रसंगवश इस संरचना के युक्तियुक्त है। यह क्रिया पौधों के अस्तित्व के लिए किसी प्रकार से भी जीवनोपयोगी नहीं है। प्रतिवर्ष लाखों पौधों की अत्यधिक वाष्पोत्सर्जनके अभिशाप के कारण मृत्यु हो जाती है। वर्ष में अनेक समय ऐसी परिस्थितियाँ प्रस्तुत होती हैं, जबकी अवशोषण की दर अत्यधिक की दर निम्न हो जाती है। लेकिन वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है। फलस्वरूप तीव्र जल न्यूनता की स्थिती के उत्पन्न हो जाने से पौधों को जीवन से हाथ धोना पड़ता है। पुनः वाष्पोत्सर्जन के खतरों से सावधान रहने के लिए पौधों को आवश्यक रूप से अतिरिक्त जल अवशोषण हेतु विशेष व्यवस्थाओं रखनी पड़ती है जिसमें इनकी कुछ ऊर्जा का व्यय तो अवश्य ही होता है, जो नितान्त अर्थहीन है। इतना सब कुछ होने के बाद भी यह क्रिया अपरिहार्य है, अर्थात् पौधे चाहते हुए भी इससे मुक्त नहीं हो सकते।

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