अवशिष्ट पदार्थों का अवलोकन कर वर्गीकरण करके विशिष्ट करण कर अध्ययन करना
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डॉ. हरि मोहन सक्सेना
बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में आज हम अपनी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति से गौरावान्वित हैं क्योंकि इसी के द्वारा हमें अनेक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हुई है। परन्तु इसके द्वारा जहाँ एक ओर जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, वहीं पर्यावरण अपकर्षण की समस्या का जन्म हुआ है, जिससे आज सम्पूर्ण विश्व चिन्तित है। पर्यावरण अपकर्षण के अनेक आयामों में से एक है- अपशिष्ट पदार्थों की वृद्धि एवं उनका पर्यावरण तथा मानव-स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव। औद्योगिकरण, नगरीकरण एवं तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है और इनके निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने से पर्यावरण के गुणवत्ता स्तर में कमी आ रही है। अतः इस समस्या का समुचित विश्लेषण एवं निदान आवश्यक है। इसी उद्देश्य से प्रस्तुत लेख में अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण की समस्या, उनके पर्यावरणीय प्रभाव एवं उचित प्रबन्धन के प्रारूप का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।
अपशिष्ट पदार्थों की प्रकृति
अपशिष्ट पदार्थों से तात्पर्य उन पदार्थों से है जिन्हें उपयोग के पश्चात अनुपयोगी मानकर फेंक दिया जाता है। इनमें एक ओर मानव द्वारा उपयोग में लाए पदार्थ जैसे कागज, कपड़ा, प्लास्टिक, काँच, रबर आदि हैं तो दूसरी ओर उद्योगों से निस्तारित तरल पदार्थ एवं ठोस अपशिष्ट। इसके अतिरिक्त खदानों का मलबा एवं कृषि अपशिष्ट आदि खुले में फेंक देने से पर्यावरण प्रदूषण सहित भू-प्रदूषण भी होता है। यह समस्या ग्रामों की अपेक्षा नगरों में अधिक है क्योंकि जनसंख्या के जमाव तथा उद्योगों के केन्द्रीकरण से अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि होती जाती है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जैसे विकसित देश में नगरीय अपशिष्टों की मात्रा प्रतिवर्ष 4.34 करोड़ टन होती है। भारत जैसे देश में जहाँ कूड़ा-करकट निस्तारण की व्यवस्था नहीं है, वहाँ इसकी मात्रा कई गुना अधिक है।
अपशिष्ट पदार्थों को उनके स्रोत के आधार पर चार श्रेणियों अर्थात घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट, नगरपालिका अपशिष्ट एवं कृषि अपशिष्ट में विभक्त किया जा सकता है।
1. घरेलू अपशिष्ट- घरों में प्रतिदिन सफाई के पश्चात गन्दगी निकलती है जिसमें धूल-मिट्टी के अतिरिक्त कागज, गत्ता, कपड़ा, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु के टुकड़े, सब्जियों एवं फलों के छिलके, सड़े-गले पदार्थ, सूखे फूल, पत्तियाँ आदि सम्मिलित होते हैं। यदा-कदा होने वाले समारोहों तथा पार्टियों में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है। ये सभी पदार्थ घरों से बाहर, सड़को अथवा निर्धारित स्थानों पर डाल दिए जाते हैं जहाँ इनके सड़ने से अनेक विषाणु उत्पन्न होते हैं जो न केवल प्रदूषण बल्कि अनेक रोगों का भी कारण हैं।
अवशिष्ट पदार्थों का अवलोकन कर वर्गीकरण करके विशिष्ट करण कर अध्ययन करना |
- अपशिष्ट का शाब्दिक अर्थ है 'अवांछित', 'अनुपयोगी', 'अपशिष्ट' या 'अपशिष्ट'। किसी भी पदार्थ के प्राथमिक उपयोग के बाद जो अवशेष रह जाता है, उसे अपशिष्ट या अवांछित पदार्थ कहते हैं। उदाहरण के लिए, नगरपालिका (घरेलू अपशिष्ट), अपशिष्ट जल (सीवेज - मलमूत्र), रेडियोधर्मी अपशिष्ट, आदि।
- अपशिष्ट जल या अपशिष्ट जल कोई भी जल है जिसकी गुणवत्ता मानव प्रभाव से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है। शहरों में, इस अपशिष्ट जल को आमतौर पर संयुक्त सीवरों या सैनिटरी सीवरों के माध्यम से भेजा जाता है और फिर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट या सेप्टिक टैंक के माध्यम से उपचारित किया जाता है। सीवेज सिस्टम के माध्यम से साफ अपशिष्ट जल को जल निकाय में छोड़ दिया जाता है।
- मल और मूत्र से दूषित अपशिष्ट जल को भी अक्सर एक प्रकार का अपशिष्ट जल माना जाता है। अपशिष्ट जल में घरेलू, नगरपालिका, या औद्योगिक तरल अपशिष्ट उत्पाद शामिल हैं जिन्हें सीवर या नालियों के माध्यम से निपटाया जाता है। इसे कभी-कभी एक वैक्यूम अपशिष्ट संग्रह वाहन (ट्रक पर लगे टैंक पर चढ़ा हुआ वैक्यूम) द्वारा भी निपटाया जाता है।
- एक सीवर या सीवेज सिस्टम एक भौतिक आधारभूत संरचना है जिसमें पाइप, पंप, स्क्रीन और नालियों की एक प्रणाली होती है जो अपशिष्ट जल को उसके मूल स्थान से उसके उपचार के बिंदु तक ले जाती है। कुछ मामलों में, जैसे सेप्टिक प्रणाली में, अपशिष्ट जल को उसके स्रोत पर ही उपचारित किया जाता है।
- ठोस अपशिष्ट का निपटान अपशिष्ट पदार्थों को जलाकर, उन्हें जमीन में गाड़कर, लैंडफिलिंग या पुनर्चक्रण द्वारा पुन: उपयोग करके किया जाता है। अपशिष्ट और अनुपयोगी सामग्री के रूप को बदलने और उन्हें पुन: उपयोग के लिए तैयार करने को पुनर्चक्रण कहा जाता है। सोख्ता गड्ढा या सीलबंद गड्ढा बनाकर पानी का पुन: उपयोग किया जा सकता है।
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