अवधारणा की निर्माण में भाषा की क्या भूमिका है
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भाषा की अवधारणा
भाषा की परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है-
भाषा यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से मनुष्य विचार करता है तथा अपने भाषायी समाज में विचारों का आदान-प्रदान करता है।
इस परिभाषा में प्राप्त कुछ अवधारणात्मक शब्द इस प्रकार हैं-
· यादृच्छिक– भाषिक इकाइयाँ (शब्द, वाक्य आदि) जो अर्थ अभिव्यक्त करती हैं, वह संबंधित मानव समाज की सामूहिक इच्छा से माना हुआ अर्थ होता है। उनके अपने अर्थ से कोई प्राकृतिक संबंध नहीं होता है।
· ध्वनि-प्रतीक– भाषा में विचार करने या संप्रेषण करने के लिए मूलतः ध्वनि-प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। किसी भाषा विशेष में व्यवहृत होने वाली भाषायी ध्वनियों को ‘स्वन’ और उनके ध्वनि-प्रतीकों को स्वनिम कहते हैं।
· व्यवस्था– भाषा मूलतः एक व्यवस्था है, जिसमें ‘स्वनिम से प्रोक्ति तक’ स्तर पाए जाते हैं।
· मनुष्य – भाषाविज्ञान में प्रयुक्त भाषा शब्द का संबंध केवल मानव प्राणियों से है।
· विचार करना– जब हम अकेले होते हैं तो भाषा का प्रयोग करते हुए मन-ही-मन विचार करते रहते हैं।
· अपना भाषायी समाज– विश्व में हजारों भाषाएँ बोली जाती हैं। किसी भाषा को समझने वाले लोगों का समूह उस भाषा का भाषायी समाज है।
· विचारों का आदान-प्रदान– एक भाषायी समाज के लोगों का एक-दूसरे के साथ विचारों को साझा करना।
भाषा की अवधारणा को संरचना की दृष्टि से भाषा के संदर्भ में इस प्रकार देख सकते हैं-
संरचना की दृष्टि से भाषा
भाषा ध्वनि प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था है जिसमें निरर्थक ध्वनियों के माध्यम से अर्थ और विचार का संप्रेषण किया जाता है।
संप्रेषण के लिए एक बार में कम-से-कम जिस ध्वनि-गुच्छ का प्रयोग किया जाता है, उसे ‘वाक्य’ कहते हैं।
ध्वनियों का समूहन 'वाक्य' के रूप में करने के लिए मानव मस्तिष्क को उनका संचयन और व्यवस्थापन कई क्रमशः बड़े स्तरों पर किया जाता है, जिन्हें भाषाविज्ञान में-
रूपिम, शब्द/पद, पदबंध और उपवाक्य += वाक्य
के रूप में विश्लेषित किया जाता है।
एक से अधिक वाक्य आपस में मिलकर एक और बड़ी संगठित इकाई का निर्माण करते हैं, जिसे ‘प्रोक्ति’ नाम दिया गया है|
यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों को अवस्था भाषा होती है। इसकी मदद से व्यक्ति विचार काने की सखामता को जागृत रखता है एवं अपने विचारो को शाद देने का प्रयास करता है इसे भाषा की अवधारणा कहते है।
अवधारणा की निम्नलिखित विशेषताए है।
- अवधारणा एक संकेत पात्र है इसके प्रतिमान अथवा वयवहार की व्याख्या नहीं पाई जाती है।
- अवधारणा के माध्यम से कल्पनाओ को शब्द मिलते है और विचारो को ध्वनि मिलती है।
अन्य विशेषताए:
- अवधारणा में परिबर्तनशीलता का गुण है।
- इसका आधार वैज्ञानिक चिंतन होता है।
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