Avsar ke Charitra ki visheshtaen likhiye
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Explanation:
अफसर आता है, चला जाता है किन्तु अफसर मरता नहीं है। जिस प्रकार शरीर को त्याग देने पर भी आत्मा नहीं मरती उसी प्रकार कुर्सियां बदलती रहती हैं पर अफसर की अफसरी वही रहती है। शरद जी उसे चालबाज़ इंसान व समय के साथ चलने वाले कछुए की संज्ञा देते हैं ।
Answer:
रामकथा पर आधारित 'अवसर' नरेन्द्र कोहली का प्रसिद्ध उपन्यास है जो सन १९७६ में प्रकाशित हुआ।
सन् १९७५ में उनके रामकथा पर आधारित उपन्यास 'दीक्षा' के प्रकाशन से हिंदी साहित्य में 'सांस्कृतिक पुनरुत्थान का युग' प्रारंभ हुआ जिसे हिन्दी साहित्य में 'नरेन्द्र कोहली युग' का नाम देने का प्रस्ताव भी जोर पकड़ता जा रहा है। "अवसर" इसी उपन्यास-श्रंखला की दूसरी कडी है।
तात्कालिक अन्धकार, निराशा, भ्रष्टाचार एवं मूल्यहीनता के युग में नरेन्द्र कोहली ने ऐसा कालजयी पात्र चुना जो भारतीय मनीषा के रोम-रोम में स्पंदित था। युगों युगों के अन्धकार को चीरकर उन्होंने भगवान राम को भक्तिकाल की भावुकता से निकाल कर आधुनिक यथार्थ की जमीन पर खड़ा कर दिया।
पाठक वर्ग चमत्कृत ही नहीं, अभिभूत हो गया! किस प्रकार एक उपेक्षित और निर्वासित राजकुमार अपने आत्मबल से शोषित, पीड़ित एवं त्रस्त जनता में नए प्राण फूँक देता है, 'अभ्युदय' में यह देखना किसी चमत्कार से कम नहीं था। युग-युगांतर से रूढ़ हो चुकी रामकथा जब आधुनिक पाठक के रुचि-संस्कार के अनुसार बिलकुल नए कलेवर में ढलकर जब सामने आयी, तो यह देखकर मन रीझे बिना नहीं रहता कि उसमें रामकथा की गरिमा एवं रामायण के जीवन-मूल्यों का लेखक ने सम्यक् निर्वाह किया है।
आश्चर्य नहीं कि तत्कालीन सभी दिग्गज साहित्यकारों से युवा नरेन्द्र कोहली को भरपूर आर्शीवाद भी मिला और बड़ाई भी. मूर्धन्य आलोचक और साहित्यकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, अमृतलाल नागर, यशपाल, जैनेन्द्र इत्यादि प्रायः सभी शीर्षस्थ रचनाकारों ने नरेन्द्र कोहली की खुले शब्दों में खुले दिल से भरपूर तारीफ़ करी।
रामकथा को आपने एकदम नयी दृष्टि से देखा है। 'अवसर' में राम के चरित्र को आपने नयी मानवीय दृष्टि से चित्रित किया है। इसमें सीता का जो चरित्र आपने चित्रित किया है, वह बहुत ही आकर्षक है। सीता को कभी ऐसे तेजोदृप्त रूप में चित्रित नहीं किया गया था। साथ ही सुमित्रा का चरित्र आपने बहुत तेजस्वी नारी के रूप में उरेहा है।
...आपने अन्तःपुर के ईर्ष्या-द्वेष से जर्जरित अवस्थाओं का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि यथा-संभव रामायण कथा की मूल घटनाओं को परिवर्तित किये बिना आपने उसकी एक मनोग्राही व्याख्या की है। ...पुस्तक आपके अध्ययन, मनन और चिंतन को उजागर करती है।" - हजारीप्रसाद द्विवेदी (३.११.१९७६) [1]
पुस्तक की शैली इतनी सहज और विचारोत्तेजक है कि अनेकों बार या तो आंसू छलछला उठते हैं या शिराओं में रक्त दौड़ने लगता है। . . आपने रामकथा को जीवन के संगी जुलूस के साथ निभाने वाले कथानक के रूप में प्रस्तुत कर साहसिक प्रयोग किया है।
सोचता हूँ कौन हो तुम जिसने समय से आगे बढ़कर आगे आने वाले समय में साथ निभाने वाली अंगुली बनकर जन-जन से तदाकार राम को, भयंकर से भयंकर युग में भी निर्जन वन में भी अपनी राह बनाने वाले राम को अकेले आदमी की तेजस्विता के साथ सुदृढ़ संबल प्रदान किया है।
..अखिल मानवता को ऊंचा उठाने वाली एक सशक्त कृति