AVTARAN FROM CHPT SANSKAR AUR BHAVNA
हाँ, उसी ने कहा था। मैंने उसे बहुत समझाया, अपने प्रेम की दुहाई दी, पर वह सदा
यही कहता रहा : 'माँ, सन्तान का पालन माँ-बाप का नैतिक कर्त्तव्य है। वे किसी
पर कोई एहसान नहीं करते, केवल राष्ट्र का ऋण चुकाते हैं। वे ऋण मुक्त हों, यही
उनका परितोष है। इससे अधिक मोह है, इसीलिए पाप है
QUESTION
राष्ट्र का ऋण'- का अर्थ स्पष्ट कीजिए। बच्चों के पालन-पोषण को 'राष्ट्र का
ऋण' क्यों कहा गया है ? समझाकर लिखिए।
PLS ANSWER
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