azadi ka matva hindi nibandh
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स्वतंत्रता दिवस पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। आजादी के दिन भी स्कूलों में मनाया जाता है, और शिक्षकों को छात्रों के लिए इस दिन के महत्व को समझा। स्कूली बच्चों को सुबह बहुत जल्दी रंगीन जुलूस बाहर ले। वे भारत की महिमा गाते हैं। सेंट्रल पार्क में जुलूस अंत। वहाँ राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है और राष्ट्रीय गान के कोरस में गाया जाता है। हर कोई एक नया शपथ लेता है देश की सेवा करने के लिए और उसकी महिमा के उत्थान के लिए सब कुछ करने के लिए। बड़ों शहीदों है जो आजादी के लिए संघर्ष में अपने जीवन का बलिदान याद है। वे महान नेता हैं जो हमारे स्वतंत्रता को जीतने के लिए एक बहुत का सामना करना पड़ा को श्रद्धांजलि देने। इस दिन भी हमें प्रेरित करती है शांति और अहिंसा के शिक्षण कि महात्मा गांधी, हमारे राष्ट्र के पिता ने सुनाया का पालन करें। इस दिन हमारा कर्तव्य है और देश के लिए जिम्मेदारी की याद दिलाता है। बैठक में एक गीत के साथ समाप्त होता है के रूप में, मिठाई सब के बीच वितरित कर रहे हैं।
आजादी की तारीखें आर्धशताब्दी पूरी कर आगे बढ़ चुकी हैं, आजादी के दीवानों की कहानियां कितनों की जबानी और कितनों की जिन्दगानी बन चुकी हैं। आजादी के इन वीर योद्धाओं में दीवानों की तरह मंजिल पा लेने का हौसला तो था, लेकिन बर्बादियों का खौफ न था। रोटियां भी मयस्सर न हों लेकिन परवाह न था, दीवानों की तरह ये आजादी के दीवाने भी, मंजिलों की तरफ बढ़ते चले गये, बड़े से बड़े जुल्मों सितम भी उनके कदमों को न रोक सके, कोई ऐसी बाधा न हुई, जिसने उनके सामने घुटने न टेक दिए। अपने हौसलों से हर मुश्किल का सीना चिरते हुए आजादी की मंजिल की तरफ बढ़ते ही चले गये। न हिसाब है, न कीमत है उनकी कुर्बानियों का, सँभाल कर रख सकें उनके जिगर के टुकड़े आजादी को सही सलामत, यही कीमत हो सकती है उनकी मेहरबानियों का। हम आजाद हुए, कितना कुछ बदल गया, खुली हवा में साँस तो ले सकते हैं, दो वक्त की रोटियां तो मिल जाती हैं, बेगार के एवज में किसी के लात घुंसे तो नहीं खाने पड़ते हैं, बहुत कुछ बदल गया। कम से कम अपने मौलिक अधिकारों के अधिकारी तो हैं, मुँह से एक शब्द लिकालना गुनाह तो नहीं है। अच्छा है हम आजाद हैं, और भी आच्छा होगा यदि हम आजाद रहें, उससे भी अच्छा होगा यदि हम दूसरों को आजाद कर सकें, गरीबी, भ्रष्टाचार, अज्ञानता और अंधविश्वास की गुलामी से। इंसानों के बंधनों से आजाद हो गये, मन के कुसंस्कारों के बन्धन से आजाद हों तो पूरा आजादी मिलेगी। दूसरों से लड़कर उनके बन्धन से तो आजाद हो गये, स्वयं के अन्दर व्याप्त कुसंस्कारों से लड़कर कितने लोग आजाद हो पाते हैं यह तो वक्त ही जानता है। आजादी एक दिन में नहीं मिली, शताब्दियां लग गयीं, इन बातों को भी समझने में वक्त लगेगा। एक विद्यार्थी को किसी संस्था के माध्यम से स्नातक होने में कम से कम पन्द्रह वर्ष तो लग ही जाते हैं, तो एक स्वनुभव से ज्ञान प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भी कम से कम पन्द्रह वर्ष लग ही जायेंगे, कुछ ज्यादा भी लग जाये तो भी हैरानी की बात नहीं, और उम्र भी बीत जाए फिर भी ज्ञान प्राप्त न हो तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि ज्यादातर यही होता है आपवाद स्वरुप में पन्द्रह वर्ष से पूर्व ही ज्ञान प्राप्त हो जाये तो भी कोई आश्चर्य नहीं। जब भी हो जैसे भी हो जब तक प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित नहीं हो जाता किसी समग्र बदलाव की उम्मीद व्यर्थ है।