Hindi, asked by jaskarnsinghsingh105, 5 months ago

बाबा भारती को अपना घोड़ा क्यों प्रिय था​

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Answered by cryliebuot07
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Answer:

बाबा भारती के पास एक बहुत सुन्दर घोड़ा था, जो बहुत तेज हवा के समान दौड़ता था। बाबा भारती जैसे किसान अपने लहलहाते खेत को देखकर हर्षित होता रहता है। वैसे ही बाबा भारती अपना घोड़ा देखकर खुश होते थे। इनके घोड़ा के गुण का बखान बहुत दूर दूर तक फैल चूके थे।

एक दिन खड़गसिंह डाकू घोड़ा को देखने के लिए बाबा भारती के पास आया। घोड़ा को देखा और कुछ दूर तक रेस भी किया और अंत में बाबा भारती से कहा की यह घोड़ा मुझे दे दो अन्यथा मै इसे जबरदस्ती लेकर ही जाऊंगा। बाबा भारती ने इसपर कुछ नहीं बोला मात्र अपनी चौकशी घोड़ा पर रखने लगा।  

उस दिन से खड़गसिंह घोड़ा को अपने आँखों में बसा लिया था। आखिर वो दिन आ ही गया। खड़गसिंह एक अपाहिज का रूप धारण कर सड़क के किनारे कम्बल ओढ़कर बैठ गया था। बाबा भारती अपने घोड़ा को प्रति दिन दो मिल तक टहलाने ले जाया करता था। उस दिन भी बाबा भारती अपना घोड़ा को टहलाने निकाला था कि रस्ते में आने देखा कि एक अपाहिज कम्बल ओढ़कर कह रहा था कि कोई परोपकारी है जो मुझे करीब एक मील तक जाकर छोड़ सके। बाबा भारती ने सोचा यह घोड़ा किस दिन के लिए काम में आएगा। उसने अपाहिज को घोड़ा पर बिठाकर लगाम देकर खुद पैदल चलने लगा। कुछ दूर जाने पर अपाहिज ने घोड़ा को दौड़ा दिया। लगाम हाथ से छूटते ही अपाहिज ने कहा कि मै खड़गसिंह हूँ। आपका घोड़ा मुझे लेना था इसलिए इस प्रकार ले लिया। इसपर बाबा भारती ने कहा की जो बात कहकर मुझे ठगा है वो किसी और से मत कहना वरना दुनिया के लोग कभी अपाहिज पर विश्वास नहीं करेंगे। मेरा आपसे बस इतना ही आग्रह है।  

डाकू खड़गसिंह को बाबा भारती की बात कानों में गूंजने लगा और बार बार यही सोचता रहा की सच में अपाहिज पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा। अतः डाकू खड़गसिंह ने अपना निर्णय बदला और घोड़े को बाबा भारती के अस्तवल में बांध आए। सुबह होते ही जब बाबा भारती ने अपना घोड़ा देखा तो ख़ुशी से फूले नहीं समाए।  

इसपर डाकू खड़गसिंह ने कहा कि आप हारकर भी जीत गये, और मैं जीतकर भी आपसे हार गया।

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