बाबा भारती ने खड़क सिंह से सुल्तान की प्रशंसा किस शब्दों में की
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बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड़ग सिंह था। बाबा कुछ समय तक चुप रहे और कुछ समय बाद कुछ निश्चय कर पूरे बल से चिल्लाकर बोले,जरा ठहर जाओ।...
Explanation:
बाबा कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की तरह मिथ्या समझने लगे। संध्या का समय था। बाबा सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। सहसा एक ओर से आवाज आई। बाबा, इस गरीब की सुनते जाना।
बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा- बाबा, मुझ पर दया करो। अगला गांव यहां से तीन मील है, मुझे वहां जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा। "वहाँ तुम्हारा कौन है?" "दुर्गादत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।"
- बाबा भारती खड़क सिंह को सुल्तान के बारे में बताते हैं और भारतीय सुल्तान को बताते हैं कि यह सुल्तान हमारा घोड़ा है।
- वह बहुत सुंदर है, बहुत आत्मविश्वासी है और बहुत तेज दौड़ता है।
- यह सुंदरता हमें मोहित करती है और हम इससे बहुत अच्छी चाल से चलते हैं।
- खटक से सुनी जाती है सुल्तान की महिमा, कैसे बोलूं ?
- यह अजीब जानवर है।
- आप इसे देखना चाहेंगे। बाबा भारती ने यह बयान लुटेरे काजू सिंह को दिया।
- बाबा भारती यह वाक्य इसलिए कहते हैं क्योंकि काज सिंह सुल्तान से मिलना चाहते हैं।
- शब्दों की प्रशंसा करने वाला व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है और प्रसन्नता से उनकी प्रशंसा करने लगता है |
- बाबा भारती इस घोड़े को बहुत प्यार किया और उसे दे दिया।
- अगले दिन, सुल्तान की खबर सुनकर, स्थानीय डाकू हजसिंह ने बाबा भारती से मुलाकात की और कहा कि वह सुल्तान से मिलना चाहता है।
- बाबा भारती गर्व से खड़क सिंह को अपना घोड़ा दिखाते हैं और उसकी गुणवत्ता की प्रशंसा करते हैं |
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