Hindi, asked by mahettarmanjhawar2, 4 months ago

बाबूजी जब कुर्सी मेज बिकती है तब दुकानदार कुर्सी मेज में कुछ नहीं पूछता सिर्फ खरीददार को दिखा दिखलाता है पसंद आ गई तो अच्छा है वरना ​

Answers

Answered by skhan61391
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Answer:

detail mai likhye aap puchhna kya chahte h

Answered by roopa2000
0

Answer:

प्रस्तुत एकांकी में रीढ़ की हड्डी’ स्त्री को समाज रूपी शरीर का हिस्सा माना गया है जो आज की नारी उपेक्षा और सामाजिक विसंगतियों का सामना कर रही है। रीढ़ की हड्डी’ शील और चरित्र का भी पर्याय है, जिसकी आज केनौजवान वर्ग  में दिन-ब-दिन कमी होती जा रही है।

यह कथन सत्य है और यह कथन रीढ़ की हड्डी एकांकी में उमा द्वारा कहा गया है.

Explanation:

क्या जवाब दूं, बाबूजी, जब कुर्सी-मेज बिकती है, तब दुकानदार कुर्सी मेज से कुछ नहीं पूछता, सिर्फ खरीददार को दिखलाता दिखा देता है पसंद आ गई तो अच्छा है, वरना...

‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के मुख्य पात्र उमा के द्वारा कहे गए इस कथन का असली अर्थ यह हैस कि माता पिता अपनी बेटी की जब कहीं शादी तय करते हैं तो सिर्फ लड़के वाले को लड़की दिखा देते हैं और दहेज प्रथा के इस कारोबार में सौदेबाजी हो जाती है। यहाँ पर लड़की का पिता विक्रेता है और लड़के का पिता खरीददार, जो अपने बेटे के लिए बहू की दहेज के एवज में सौदेबाजी करता है। यहां पर लड़की की इच्छा का कोई महत्व नहीं। उमा ने दुकानदार, खरीददार और कुर्सी-मेज का उदाहरण देकर अपनी व्यथा कहने की कोशिश की है।

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