बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के अनुसार जाति प्रथा को स्वाभाविक श्रम विभाजन क्यों नहीं माना जा सकता
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बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के अनुसार जाति प्रथा को स्वाभाविक श्रम विभाजन क्यों नहीं माना जा सकता
जाती प्रथा , श्रम का विभाजन नहीं करती है , बल्कि यह श्रमिकों को बाँट के रख देती है | जी के अनुसार यह एक सभ्य विभाजन नहीं है |
जाति प्रथा में श्रम विभाजन किया गया है परंतु वह व्यक्ति की कोई रूचि को ध्यान में रख कर नहीं किया गया है | यह गलत किया गया है कि किसी भी व्यक्ति की रूचि , योग्यता तथा क्षमता को ध्यान में नहीं रखा गया है | उनके लिए जीविका के साधन को किसी और व्यक्ति द्वारा तय किया गया है |
जाती प्रथा का धब्बा मनुष्य को जीवनभर के लिए दे दिया गया है | चाहे वह काम उस व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करता हो या नहीं | आज भी मनुष्य को गरीबी का सामना करना पड़ता है |
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