Hindi, asked by mahima3131, 5 months ago

बिछी बुआ रेखाचित्र का सारांश अपने शब्दों में लिखिए​

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Answered by nitinrana15012006
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Answer:

muh mein le

Explanation:

okkabsnsnsnsnajbsbsabajsjaja

Answered by Mithalesh1602398
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Answer:

याद नहीं पड़ता उसने कभी मुझे प्यार किया हो, कभी दुलारा हो, पुचकारा हो. हमेशा दुत्कारा था मुझे उसने. मैं उसकी झिड़कियों की आदी हो गई थी. दिन में कम-से-कम तीन-चार बार वह मेरे लिए अवश्य कहती `मर क्यों न गई पैदा होते ही?', `तू पैदा ही क्यों हुई?', `हे भगवान! क्या होगा इसका!' मैं इतनी ढ़ीठ, इतनी बेहया हो गई थी कि उसके कोसने का इंतजार करती. सूरज पश्चिम से निकल आए पर उसका कोसना नहीं रुक सकता था. उसका स्वभाव ही चिड़चिड़ा था, दिन भर भुनभुनाती रहती, दूसरों के काम में नुक्स निकालती रहती. कभी मेहतरानी को देर से आने पर डाँटती, कभी मेहरी के धोए बरतनों से शिकायत रहती, कभी धोबी के लाए कपड़ों पर कलफ़ या इस्तरी ठीक नहीं होती, पर सबसे ज्यादा मैं उसकी आँखों में खटकती थी. ऐसा भी नहीं था कि वह प्यार जताना नहीं जानती थी, उसे दुलार करना, मीठा बोलना न आता हो. पर मुझसे खास खार थी, मुझे देखते ही कोई चिंगारी उसके अन्दर सुलग उठती और वह भड़क जाती. मेरा बाल मन उसे खिजा कर आनन्द लेता. पर अक्सर मैं भी सोचती, `भला मैं पैदा ही क्यों हुई?'

Explanation:

Step : 1  सुबह मेरे सोकर उठने के पहले ही उसके अत्याचार शुरु हो जाते. कान मरोड़ कर उठाना सामान्य बात थी. भरे जाड़े में मेरे ऊपर लोटा भर पानी उड़ेल देना, मुझे खाट सहित उठाकर खड़ी कर देना रोजमर्रा की बात थी. जब तक मैं मुँह धोकर आती वह चौके में नाश्ता बना रही होती. मेरे लिए होती रात की बची बासी रोटी. अगर कभी ताजे पराठे देने पड़ गए तो मेरे लिए खास कर कम घी लगा कर बनाती. पराँठे के संग सबको दूध मिलता, मैं माँगती तो बड़ी मुश्किल से मलाई बचा कर चुल्लू भर दे देती. बिस्कुट का पूरा पैकेट मेरे सामने खाली कर देती, आस-पास के दूसरे बच्चों को बुला-बुला कर देती मैं वहीं खड़ी रहती तब भी मुझे एक बिस्कुट उठा कर न देती.

Step : 2  उसकी अंगुलियाँ बड़ी दक्ष थीं. वो सिलाई, बुनाई-कढ़ाई में बड़ी कुशल थी. रात दिन बैठ कर स्वेटर बुनती और चौबीस घंटों में स्वेटर सलाइयों से उतार फेंकती, मगर याद नहीं पड़ता कभी मेरे लिए एक टोपी बुनी हो. कसीदाकारी में उसका हाथ बड़ा साफ था, साटिन स्टिच इतनी सुन्दर, इतनी नीट फिर कभी मैंने किसी की नहीं देखी, मगर भूल से मेरे लिए कभी एक फ्रॉक न बनाई, फूल काढ़ना तो दूर की बात रही.

Step : 3  आप सोच रहे होंगे मैं कोई अनाथ या सौतेली संतान थी और वो मेरी सौतेली माँ, या मैं कोई नौकर और वो मेरी मालकिन. नहीं, ऐसा कुछ नहीं था. मैं अनाथ या सौतेली संतान नहीं थी, न ही वो मेरी सौतेली माँ. न मैं नौकर थी और न ही वो मेरी मालकिन. मैं तो उसकी सगी अपनी थी, अपना खून. मैं उसकी सगी भतीजी थी, उसके अपने सगे भाई की सगी संतान और वो मेरी अपनी, सगी बुआ थी. उसी भाई की बेटी जिस पर वो जान छिड़कती थी. जिस भाई के लिए वो अपने हाथों से तरह-तरह के व्यंजन बनाती, जिसके लिए वो नए-नए डिजाइन के स्वेटर बुनती थी. मैं उसके उसी भाई की संतान थी, बड़ा करीबी रिस्ता था हमारा. एक खून, एक खानदान.

Step : 4  मेरी यह बुआ मेरे पिता की बड़ी बहन थी. बड़ी दबंग औरत थी. लम्बी-चौड़ी बुआ मुझे कभी बदसूरत नहीं लगी पर उसे सुन्दर नहीं कहा जा सकता था. खासकर सुन्दरता की परिभाषा-परिधि में जो रूप- गुण आते हैं वो उसमें अनुपस्थित थे. गोरा चम्पई रंग, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, लाल-लाल होंठ, उठी हुई सुतुवाँ नाक, अनार के दानों जैसे कतार में सजे हुए छोट-छोटे चमकते दाँत, पतली कमर, लम्बे- घने चमकीले काले बाल - यही है न कालिदास से ले कर आज तक की सुन्दरता की परिभाषा. पर लम्बे-घने-काले-चमकीले बालों के अलावा अन्य सभी गुण नदारद थे उसमें. वो साँवले रंग की थी. साँवला भी शायद सुन्दर की श्रेणी में आता यदि वह खुलता हुआ होता, पर उसका साँवला रंग काले की ओर झुकता था. आँख और नाक विशिष्ट न थे, बड़े सामान्य से थे. हाँ दाँत अवश्य विशिष्ट थे, पर उल्टी दिशा में. आकार में कुछ बड़े और आगे को उभरे हुए.

Step : 4 वो खूबसूरत नहीं थी, ये बात मुझे बहुत बाद में पता चली. उसे ही पहले कहाँ पता थी, उसके माता-पिता ने उसे पहले कभी बताया ही नहीं था कि वो बदसूरत है. उसे बहुत बाद में पता चला कि वह खूबसूरत नहीं है, इतना ही नहीं उसे जताया गया कि वह बदसूरत है. खूबसूरत नहीं है यह नहीं बताया जाता तो कोई प्रलय नहीं आ जाती पर बदसूरत है यह बता-जता कर प्रलय लाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई. आठ बेटे जनने के बाद उसकी माँ यानी कि मेरी आजी (दादी) ने देवी की पूजा की और प्रार्थना की कि इस बार उसे बेटी देना वरना कन्यादान का पुण्य पाने का सौभाग्य उन्हें कैसे मिलेगा. आठ बेटों में से कई पैदा होते ही मर गए, कई दो साल पूरा करते-न-करते पूरे हो गए. केवल मेरे एक ताऊ बचे थे. उनकी प्रार्थना बड़ी बलवती रही होगी, उनकी प्रार्थना में बड़ी शक्ति रही होगी, तभी आठ बेटों के बाद उनकी बेटी पैदा हुई थी और इसके बाद पेट-पोंछना हुए थे मेरे पिता. सारे परिवार में बस यही एक कन्या थी, इसलिए सिर चढ़ी थी.

Step : 5 घर धन-धान्य से भरा-पूरा था, सो खूब लाड़-प्यार से पाला-पोसा गया था उसे. पिता की आँखों की पुतली थी, दोनों भाई जान छिड़कते थे, माँ हथेली पर लिए फिरती थी, एक मिनट के लिए आँखों से ओझल नहीं होने देती. इस नेह-छोह की वर्षा के बीच घर में कभी किसी को उसकी बदसूरती नजर नहीं आई, उनके लिए वह खूबसूरत हँसती-बोलती गुड़िया थी. यह नन्हीं सी-जान पान-फूल की तरह दुलार पा कर बढ़ती गई. लड़की होशियार थी

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