बूढी काकी के मन में कैसे-कैसे मंसुबे बंधे ।
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यह विश्वास कि एक मिनट में पूड़ियाँ और मसालेदार
तरकारियाँ सामने आएँगी, उनकी स्वादेद्रिंयों को गुदगुदाने लगा । उन्होंने
मन में तरह-तरह के मनसूबे बाँधे, पहले तरकारी से पूड़ियाँ खाऊँगी, फिर
दही और शक्कर से, कचौड़ियाँ रायते के साथ मजेदार मालूम होंगी । चाहे
कोई बुरा माने चाहे भला, मैं तो माँग-माँगकर खाऊँगी, लोग यही न कहेंगे
कि इन्हें विचार नहीं ? कहा करें, इतने दिन के बाद पूड़ियाँ मिल रही हैं तो
मुँह जूठा करके थोड़े ही उठ जाऊँगी !
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