English, asked by sharadthorat, 4 months ago

बुढापा बहुदा बचपन का पुनरागमन होता है । ' इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए​

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Answered by Anonymous
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Answer:

बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है। बूढ़ी काकी में जिह्वा-स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने का, रोने के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा ही। ... यद्यपि उस सम्पत्ति की वार्षिक आय डेढ़-दो सौ रुपए से कम न थी तथापि बूढ़ी काकी को पेट भर भोजन भी कठिनाई से मिलता था।

Answered by XxMrsZiddixX
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प्रेमचंदने अपनी रचनाओं सेे भारतीय उपमहाद्वीप की संवेदनाओं को झकझोरा है। उनकी चर्चित रचना बूढ़ी काकी पर आधारित नाटक का मंचन मंगलवार को भारतीय नृत्य कला मंदिर में हुआ। स्वर्ग रंगमंडल, इलाहाबाद के कलाकारों ने लोकनाट्य शैली में इस नाटक को पेश कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नाटक के निर्देशक थे अतुल यदुवंशी। नाटक बूढ़ी काकी में दिखाया गया कि बुढ़ापा अक्सर बचपन का पुनरागमन होता है। इसमें इंसान की समझ बच्चों सी हो जाती है। नाटक की कहानी कुछ यूं थी कि बूढ़ी काकी में जिह्वा स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष नहीं थी। अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने के लिए रोने के सिवा कोई दूसरा सहारा उसके पास नहीं रहता। पूरे परिवार में काकी से किसी को कोई अनुराग था तो वह था बुद्धिराम की छोटी लड़की लाडली। बुद्धिराम के बड़े लड़के का तिलक आता है जिससे घी और मसाले की सुगंध चारों ओर फैली हुई थी।

बूढ़ी काकी को यह स्वाद बेचैन कर रहा था, मेहमानों के भोजन के बाद घर वालों ने भोजन कर लिया, नौकर-चाकरों ने भी भोजन कर लिया लेकिन किसी ने बूढ़ी काकी को पूछा तक नहीं। देर रात जब काकी को भूख लगी तो वह जूठे पत्तलों के पास बैठ गई और जूठन खाने लगी।

भारतीय नृत्य कला मंदिर आयोजित नाटक बूढ़ी काकी का मंचन करते कलाकार।

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