बाढ पीडित की आत्मकथा
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एक बाढ़ पीड़ित की आत्मकथा
मैं यानि कि चुनु राम अपने मिट्टी की ईंटों से बने घर में 10 सालों से रह रहा था । हर साल बरसात के मौसम में सीलन सी आ जाती थी पर अच्छी धूप लते ही सब ठीक हो जाता था । इस बार जैसा अखबार में पढ़ा था, बरसात पहले से कुछ ज्यादा ही हो रही थी। छत से पानी टपकना फिर से शुरू हो गया था । पर जो कभी सपने में भी नहीं सोचा था ऐसा होगा, अभी भी यकीन नही होता। इस बार बरसात का पानी इस तरह बरसा कि मेरा घर ही बहा कर ले गया। रात के 3 बजे बहुत बारिश हो रही थी । अचानक से आसमान के घड़कने कि आवाज आई । मुझे लगा कि मेरे घर पर कुछ गिर गया । मैं एकदम उठा और बाहर के तरफ भागा । पानी अभी तक घुटनों से नीचे बह रहा था पर देखते ही देखते पानी में एक उफान सा आया और घर कि दीवार की दरारें चौड़ी हो गयी। मैं भीगता हुआ साथ के ऊंचे टीले की तरफ भागा । घर में सारा सामान बिखरा पड़ा रह गया सोचा शायद थोड़ी देर में सब शांत हो जाता है तो सब बटोर लूँगा। मेरा सोचना धारा का धारा ही रह गया। एक दम से कुछ गिरने की आबाज़ आई देखा तो यह मेरा घर पानी में बह रहा था।
मेरे घर के साथ ही मेरे सपने भी बाढ़ में ही बह गए।