b) एक और दोणाचार्य नाटक के लीला और प्रिंसिपाल ते
पर प्रकाश डालिए।
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रायगढ़ (निप्र)। इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह की तीसरी शाम अग्रगामी नाट्य समिति रायपुर की 'एक और द्रोणाचार्य' के नाम रही। बिलासपुर के स्व. शंकर शेष लिखित एवं जलील रिजवी निर्देशित नाटक दो कालों की शिक्षा-व्यवस्था की समानांतर पड़ताल करता है। महाभारत काल में द्रोणाचार्य अपनी पत्नी कृपि व भीष्म के आग्रह पर पांडवों एवं कौरवों को शिक्षा देने राजभवन जाते हैं, जिस राजपरिवार के माध्यम से उन्हें जीवन-यापन की सुख-सुविधा और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। उसी परिवार के राजकुमार अर्जुन को श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के मनोवैज्ञानिक दबाव से उनके पुतले को गुरु बनाकर धनुर्विद्या में श्रेष्ठ साबित होने वाले आदिवासी बालक एकलव्य अर्जुन से श्रेष्ठ न बने, इसलिए गुरुदक्षिणा में उसके दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लेते हैं। बाद में द्रोणाचार्य को इस भेदभाव भरे आचरण पर दुख होता है और वे सारा दोष कृपि पर मढ़ देते हैं। महाभारत की कथा के समानांतर आधुनिक युग के प्रोफेसर अरविंद की कहानी चलती है। अरविंद सिद्धांतवादी है, वह मैनेजमेंट के सभापति के बिगड़ैल लड़के को नकल मारते पकड़ लेते हैं। परंतु सभापति उन्हें प्राचार्य पद के प्रमोशन का लालच देकर पत्नी लीला के आग्रह पर अन्य लड़के चंदू को नकल प्रकरण में फंसा देते हैं। आगे भी सभापति उन्हें कठपुतली की तरह इस्तेमाल करना चाहता है और उनकी अंतरात्मा बार-बार कोसती है कि उन्होंने पहली बार ही समझौता क्यों किया। पूरे नाटक में आर्थिक-सामाजिक सुविधाओं को अनायास प्राप्त करने की ऐवज में मूल्यों को खोने की मजबूरी को बहुत गंभीरता से उभारा गया है। द्रोणाचार्य और कृपि की भूमिका में जलील रिवी और नूतन रिवी ने उन पौराणिक चरित्रों को जीवंत किया। प्रोफेसर अरविंद और लीला की भूमिकाओं में क्रमशः काजल दत्ता और अनुराधा दुबे ने सिद्धांतवादी व्यक्ति के कश्मकश और एक महत्वाकांक्षी पत्नी के चरित्रों को उभारा। अरविंद के मित्र यदु की भूमिका में वाहिद शरीफ, प्रेसीडेन्ट की भूमिका में प्रकाश खांडेकर ने समाज के मध्यवर्गीय अवसरवादी चरित्रों को साकार किया। विमलेन्दु की प्रेतात्मा की आवाज को वाणी दी घनश्याम सेंदरे ने। इनके अलावा इकराम हैदर जावेद ने भीष्म, विजय श्रीवास्तव ने प्रिंसिपल, रोहित भूषणवार ने चंदू व युधिष्ठिर, अजहरूद्दीन सिद्दीकी ने अश्वत्थामा, वीणा पंडवार ने अनुराधा, विकासदास बघेल ने एकलव्य एवं सैनिक, जीत पाल सेंदरे ने अर्जुन तथा काव्या पंडवार ने बाल अश्वत्थामा की भूमिका निभाईं। प्रकाश-व्यवस्था थी बलदेव संधु की। संगीत-व्यवस्था थी जमाल रिवी और समीर रिवी की तथा उद्घोषक थीं सौम्या रिजवी। तीसरे दिन का मंच संचालन अजेश शुक्ला ने किया।