बागेची आत्मकथन बागेची निगा---------- स्वच्छता------------ खाद्यपदार्थ------------ स्वागत--------- औषधी वनस्पती------------------- रंगीबेरंगी फुले---------------- पक्षी
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मक
बि
क
म
अति परिचय ते होत है, अरुचि, अनादर भाय।
मलयगिरि की भीलनी, चंदन देत जराय।।
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।
रोपै बिरवा नीम को, आम कहाँ ते होय।।
रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहु।
दूध कलारिन हाथ लखि, मद समुझे सब ताहु।।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
सुख के माथे सिल परै, नाम हृदय से जाय।
बलिहारी वा दुक्ख
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