Art, asked by Harshrana6, 4 months ago

बंगाल स्कूल के चित्रकार नंद लाल बोस द्वारा बनाई गई पेंटिंग के शीर्षक का उल्लेख करें।
(क) यात्रा का अंत (ख) राधिका
(ग) शिव और सती (घ) मेघदूत


Harshrana6: hmm

Answers

Answered by kirti012362
2

Answer:

unavailable question...................and ans too ....sorry


kirti012362: which profile
Harshrana6: kirt01
Harshrana6: y wali
Harshrana6: gram p
kirti012362: __kirti_01_
kirti012362: it's my id
Harshrana6: ig pe meri id harshrana163
Harshrana6: pata hai mujhe
kirti012362: hmm
rockingharshitsrivas: hii
Answered by dazysahu9295
0

Answer:

Explanation

जीवन परिचय प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1882 ई. में मुंगेर ज़िला, बिहार में हुआ था। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस ऑर्किटेक्ट तथा महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें अनेक विद्यालयों में भर्ती कराया गया, पर वे पढ़ाई में मन न लगने के कारण सदा असफल होते। यमराज और नचिकेता चित्रकार- नंदलाल बोस उनकी रुचि आरंभ से ही चित्रकला की ओर थी। उन्हें यह प्रेरणा अपनी माँ क्षेत्रमणि देवी से मिट्टी के खिलौने आदि बनाते देखकर मिली। अंत में नंदलाल को कला विद्यालय में भर्ती कराया गया। इस प्रकार 5 वर्ष तक उन्होंने चित्रकला की विधिवत शिक्षा ली। उन्होंने 1905 से 1910 के बीच कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली, इंडियन स्कूल ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में अध्यापन किया और 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे। प्रथम गुरु कुम्भकार बिहार में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 15 साल की आयु में नंदलाल उच्च शिक्षा के लिए बंगाल गए। उस समय बिहार, बंगाल से अलग नहीं था। कला के प्रति बालसुलभ मन का कौतुक उन्हें जन्मभूमि पर ही पैदा हुआ। यहाँ के कुम्भकार ही उनके पहले गुरु थे। बाद में वे बंगाल स्कूल के छात्र बने और फिर शांतिनिकेतन में कला भवन के अध्यक्ष। स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने खूब हिस्सा लिया। गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू के अत्यंत प्रिय थे। यह बिहार की माटी से उनकी बाबस्तगी थी कि कला जगत् के आकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र जैसी ऊंचाई पाने के बाद, अपने व्यस्ततम जीवनचर्या के बावजूद वे बार-बार अपनी जन्मभूमि को देखने आते रहे। छात्रों के साथ राजगीर और भीमबाध की पहाड़ियों में हर साल वे दो-तीन बार एक्सकर्सन के लिए आया करते थे। राज्य सरकार के स्तर पर इनकी स्मृति को संरक्षित करने का कोई प्रयास आज तक नहीं हुआ।[1]

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