बाघ बचाओ परियोजना के बारे में जानकारी प्राप्त कर लिखो।
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बाघ परियोजना की शुरुआत ७ अप्रैल १९७३ को हुई थी। इसके तहत शुरू में ९ बाघ अभयारण्य बनाए गए थे। आज इनकी संख्या बढ़कर ३२ हो गई है। सरकारी आकडों के अनुसार वर्तमान में १४११ बाघ बचे हुए है। बाघ परियोजना केन्द्र प्रायोजित योजना है।
वैज्ञानिक, आर्थिक, सौंदर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भारत में बाघों की वास्तविक आबादी को बरकारर रखने के लिए तथा हमेशा के लिए लोगों की शिक्षा व मनोरंजन के हेतु राष्ट्रीय धरोहर के रूप में इसके जैविक महत्व के क्षेत्रों को परिरक्षित रखने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित बाघ परियोजना वर्ष १९७३ में शुरू की गई थी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ व अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो के गठन संबंधी प्रावधानों की व्यवस्था करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम १९७२ में संशोधन किया गया। बाघ अभयारण्य के भीतर अपराध के मामलों में सजा को और कड़ा किया गया। वन्यजीव अपराध में प्रयुक्त किसी भी उपकरण, वाहन अथवा शस्त्र को जब्त करने की व्यवस्था भी अधिनियम में की गई है। सेवानिवृत्त सैनिकों और स्थानीय कार्यबल तैनात करके 17 बाघ अभ्यारण्यों को शत-प्रतिशत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की गई। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति का गठन किया गया और बाघ संरक्षण फाउंडेशन की स्थापना की गई। संसद के समक्ष वार्षिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट रखी गई। अभ्यारण्य प्रबंधन में संख्यात्मक मानकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ बाघ संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए 4-9-2006 से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया। वन्यजीवों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए पुलिस, वन, सीमा शुल्क और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों से युक्त एक बहुविषयी बाघ तथा अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो), की स्थापना 6-6-2007 को की गई थी। आठ नए बाघ अभ्यारण्यों की घोषणा के लिए अनुमोदन स्वीकृत हो गया है। बाघ संरक्षण को और अधिक मजबूत बनाने के लिए राज्यों को बाघ परियोजना के संशोधित दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं। जिनमें चल रहे कार्यकलापों के साथ ही बाघ अभ्यारण्य के मध्य या संवेदनशील क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संबंधित ग्राम पुनर्पहचान/पुनर्वास पैकेज (एक लाख रुपए प्रति परिवार से दस लाख रुपए प्रति परिवार) को धन सहायता देने, परंपरागत शिकार और मुख्यधारा में आय अर्जित करने तथा बाघ अभ्यारण्य से बाहर के वनों में वन्यजीव संबंधी चीता और बाघों के क्षेत्रों में किसी भी छेड़छाड़ को रोकने संबंधी रक्षात्मक रणनीति को अपना कर बाघ कोरीडोर संरक्षण का सहारा लेते हुए समुदायों के पुनर्वास/पुनर्स्थापना संबंधी कार्यकलाप शामिल हैं। बाघों का अनुमान लगाने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया। इस नये तरीके से अनुमानतया 93697 कि॰मी॰ क्षेत्र को बाघों के लिए संरक्षित रखा गया है। उस क्षेत्र में बाघों की संख्या अनुमानतया 1411 है, अधिकतम 1657 और नई वैज्ञानिक विधि के अनुसार न्यूनतम 1165 है। इस अनुमान/आकलन के नतीजे भविष्य में बाघों के संरक्षण की रणनीति बनाने में बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। भारत ने चीन के साथ बाघ संरक्षण संबंधी समझौता किया है। इसके अलावा वन्यजीवों के अवैध व्यापार के बारे में सीमापार नियंत्रण और संरक्षण के संबंध में नेपाल के साथ एक समझौता किया है। बाघ संरक्षण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बाघ पाए जाने वाले देशों में एक ग्लोबल टाइगर फोरम का गठन किया गया है।
वैज्ञानिक, आर्थिक, सौंदर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भारत में बाघों की वास्तविक आबादी को बरकारर रखने के लिए तथा हमेशा के लिए लोगों की शिक्षा व मनोरंजन के हेतु राष्ट्रीय धरोहर के रूप में इसके जैविक महत्व के क्षेत्रों को परिरक्षित रखने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित बाघ परियोजना वर्ष १९७३ में शुरू की गई थी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ व अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो के गठन संबंधी प्रावधानों की व्यवस्था करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम १९७२ में संशोधन किया गया। बाघ अभयारण्य के भीतर अपराध के मामलों में सजा को और कड़ा किया गया। वन्यजीव अपराध में प्रयुक्त किसी भी उपकरण, वाहन अथवा शस्त्र को जब्त करने की व्यवस्था भी अधिनियम में की गई है। सेवानिवृत्त सैनिकों और स्थानीय कार्यबल तैनात करके 17 बाघ अभ्यारण्यों को शत-प्रतिशत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की गई। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति का गठन किया गया और बाघ संरक्षण फाउंडेशन की स्थापना की गई। संसद के समक्ष वार्षिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट रखी गई। अभ्यारण्य प्रबंधन में संख्यात्मक मानकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ बाघ संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए 4-9-2006 से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया। वन्यजीवों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए पुलिस, वन, सीमा शुल्क और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों से युक्त एक बहुविषयी बाघ तथा अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो), की स्थापना 6-6-2007 को की गई थी। आठ नए बाघ अभ्यारण्यों की घोषणा के लिए अनुमोदन स्वीकृत हो गया है। बाघ संरक्षण को और अधिक मजबूत बनाने के लिए राज्यों को बाघ परियोजना के संशोधित दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं। जिनमें चल रहे कार्यकलापों के साथ ही बाघ अभ्यारण्य के मध्य या संवेदनशील क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संबंधित ग्राम पुनर्पहचान/पुनर्वास पैकेज (एक लाख रुपए प्रति परिवार से दस लाख रुपए प्रति परिवार) को धन सहायता देने, परंपरागत शिकार और मुख्यधारा में आय अर्जित करने तथा बाघ अभ्यारण्य से बाहर के वनों में वन्यजीव संबंधी चीता और बाघों के क्षेत्रों में किसी भी छेड़छाड़ को रोकने संबंधी रक्षात्मक रणनीति को अपना कर बाघ कोरीडोर संरक्षण का सहारा लेते हुए समुदायों के पुनर्वास/पुनर्स्थापना संबंधी कार्यकलाप शामिल हैं। बाघों का अनुमान लगाने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया। इस नये तरीके से अनुमानतया 93697 कि॰मी॰ क्षेत्र को बाघों के लिए संरक्षित रखा गया है। उस क्षेत्र में बाघों की संख्या अनुमानतया 1411 है, अधिकतम 1657 और नई वैज्ञानिक विधि के अनुसार न्यूनतम 1165 है। इस अनुमान/आकलन के नतीजे भविष्य में बाघों के संरक्षण की रणनीति बनाने में बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। भारत ने चीन के साथ बाघ संरक्षण संबंधी समझौता किया है। इसके अलावा वन्यजीवों के अवैध व्यापार के बारे में सीमापार नियंत्रण और संरक्षण के संबंध में नेपाल के साथ एक समझौता किया है। बाघ संरक्षण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बाघ पाए जाने वाले देशों में एक ग्लोबल टाइगर फोरम का गठन किया गया है।
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प्रोजेक्ट टाईगर
प्रोजेक्ट टाईगर (बाघ बचाओ परियोजना) की शुरुआत ७ अप्रैल १९७३ को हुई थी। इसके अन्तर्गत आरम्भ में ९ बाघ अभयारण्य बनाए गए थे। आज इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। सरकारी आकडों के अनुसार 2006 में १४११ बाघ बचे हुए है। 2010 में जंगली बाघों की संख्या 1701 हो गयी है। 2226 बाघ 2014 में प्राकृतिक वातावरण में थे। यह केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना है।

वैज्ञानिक, आर्थिक, सौंदर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भारत में बाघों की वास्तविक आबादी को बरकरार रखने के लिए तथा हमेशा के लिए लोगों की शिक्षा व मनोरंजन के हेतु राष्ट्रीय धरोहर के रूप में इसके जैविक महत्व के क्षेत्रों को परिरक्षित रखने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित बाघ परियोजना वर्ष १९७३ में शुरू की गई थी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ व अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो के गठन संबंधी प्रावधानों की व्यवस्था करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम १९७२ में संशोधन किया गया। बाघ अभयारण्य के भीतर अपराध के मामलों में सजा को और कड़ा किया गया। वन्यजीव अपराध में प्रयुक्त किसी भी उपकरण, वाहन अथवा शस्त्र को जब्त करने की व्यवस्था भी अधिनियम में की गई है। सेवानिवृत्त सैनिकों और स्थानीय कार्यबल तैनात करके १७ बाघ अभ्यारण्यों को शत-प्रतिशत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की गई। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति का गठन किया गया और बाघ संरक्षण फाउंडेशन की स्थापना की गई। संसद के समक्ष वार्षिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट रखी गई। अभ्यारण्य प्रबंधन में संख्यात्मक मानकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ बाघ संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए ४-९-२००६ से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया।
वन्यजीवों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए पुलिस, वन, सीमा शुल्क और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों से युक्त एक बहुविषयी बाघ तथा अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो), की स्थापना ६-६-२००७ को की गई थी। आठ नए बाघ अभ्यारण्यों की घोषणा के लिए अनुमोदन स्वीकृत हो गया है। बाघ संरक्षण को और अधिक मजबूत बनाने के लिए राज्यों को बाघ परियोजना के संशोधित दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं। जिनमें चल रहे कार्यकलापों के साथ ही बाघ अभ्यारण्य के मध्य या संवेदनशील क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संबंधित ग्राम पुनर्पहचान/पुनर्वास पैकेज (एक लाख रुपए प्रति परिवार से दस लाख रुपए प्रति परिवार) को धन सहायता देने, परंपरागत शिकार और मुख्यधारा में आय अर्जित करने तथा बाघ अभ्यारण्य से बाहर के वनों में वन्यजीव संबंधी चीता और बाघों के क्षेत्रों में किसी भी छेड़छाड़ को रोकने संबंधी रक्षात्मक रणनीति को अपना कर बाघ कोरीडोर संरक्षण का सहारा लेते हुए समुदायों के पुनर्वास/पुनर्स्थापना संबंधी कार्यकलाप शामिल हैं।
बाघों का अनुमान लगाने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया। इस नये तरीके से अनुमानतया ९३६९७ कि॰मी॰ क्षेत्र को बाघों के लिए संरक्षित रखा गया है। उस क्षेत्र में बाघों की संख्या अनुमानतया १४११ है, अधिकतम १६५७ और नई वैज्ञानिक विधि के अनुसार न्यूनतम ११६५ है। इस अनुमान/आकलन के नतीजे भविष्य में बाघों के संरक्षण की रणनीति बनाने में बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। भारत ने चीन के साथ बाघ संरक्षण संबंधी समझौता किया है। इसके अलावा वन्यजीवों के अवैध व्यापार के बारे में सीमापार नियंत्रण और संरक्षण के संबंध में नेपाल के साथ एक समझौता किया है। बाघ संरक्षण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बाघ पाए जाने वाले देशों में एक ग्लोबल टाइगर फोरम का गठन किया गया है।
प्रोजेक्ट टाईगर (बाघ बचाओ परियोजना) की शुरुआत ७ अप्रैल १९७३ को हुई थी। इसके अन्तर्गत आरम्भ में ९ बाघ अभयारण्य बनाए गए थे। आज इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। सरकारी आकडों के अनुसार 2006 में १४११ बाघ बचे हुए है। 2010 में जंगली बाघों की संख्या 1701 हो गयी है। 2226 बाघ 2014 में प्राकृतिक वातावरण में थे। यह केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना है।

वैज्ञानिक, आर्थिक, सौंदर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भारत में बाघों की वास्तविक आबादी को बरकरार रखने के लिए तथा हमेशा के लिए लोगों की शिक्षा व मनोरंजन के हेतु राष्ट्रीय धरोहर के रूप में इसके जैविक महत्व के क्षेत्रों को परिरक्षित रखने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित बाघ परियोजना वर्ष १९७३ में शुरू की गई थी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ व अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो के गठन संबंधी प्रावधानों की व्यवस्था करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम १९७२ में संशोधन किया गया। बाघ अभयारण्य के भीतर अपराध के मामलों में सजा को और कड़ा किया गया। वन्यजीव अपराध में प्रयुक्त किसी भी उपकरण, वाहन अथवा शस्त्र को जब्त करने की व्यवस्था भी अधिनियम में की गई है। सेवानिवृत्त सैनिकों और स्थानीय कार्यबल तैनात करके १७ बाघ अभ्यारण्यों को शत-प्रतिशत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की गई। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति का गठन किया गया और बाघ संरक्षण फाउंडेशन की स्थापना की गई। संसद के समक्ष वार्षिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट रखी गई। अभ्यारण्य प्रबंधन में संख्यात्मक मानकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ बाघ संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए ४-९-२००६ से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया।
वन्यजीवों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए पुलिस, वन, सीमा शुल्क और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों से युक्त एक बहुविषयी बाघ तथा अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो), की स्थापना ६-६-२००७ को की गई थी। आठ नए बाघ अभ्यारण्यों की घोषणा के लिए अनुमोदन स्वीकृत हो गया है। बाघ संरक्षण को और अधिक मजबूत बनाने के लिए राज्यों को बाघ परियोजना के संशोधित दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं। जिनमें चल रहे कार्यकलापों के साथ ही बाघ अभ्यारण्य के मध्य या संवेदनशील क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संबंधित ग्राम पुनर्पहचान/पुनर्वास पैकेज (एक लाख रुपए प्रति परिवार से दस लाख रुपए प्रति परिवार) को धन सहायता देने, परंपरागत शिकार और मुख्यधारा में आय अर्जित करने तथा बाघ अभ्यारण्य से बाहर के वनों में वन्यजीव संबंधी चीता और बाघों के क्षेत्रों में किसी भी छेड़छाड़ को रोकने संबंधी रक्षात्मक रणनीति को अपना कर बाघ कोरीडोर संरक्षण का सहारा लेते हुए समुदायों के पुनर्वास/पुनर्स्थापना संबंधी कार्यकलाप शामिल हैं।
बाघों का अनुमान लगाने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया। इस नये तरीके से अनुमानतया ९३६९७ कि॰मी॰ क्षेत्र को बाघों के लिए संरक्षित रखा गया है। उस क्षेत्र में बाघों की संख्या अनुमानतया १४११ है, अधिकतम १६५७ और नई वैज्ञानिक विधि के अनुसार न्यूनतम ११६५ है। इस अनुमान/आकलन के नतीजे भविष्य में बाघों के संरक्षण की रणनीति बनाने में बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। भारत ने चीन के साथ बाघ संरक्षण संबंधी समझौता किया है। इसके अलावा वन्यजीवों के अवैध व्यापार के बारे में सीमापार नियंत्रण और संरक्षण के संबंध में नेपाल के साथ एक समझौता किया है। बाघ संरक्षण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बाघ पाए जाने वाले देशों में एक ग्लोबल टाइगर फोरम का गठन किया गया है।
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