बिहारी
8. सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माला
यहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।।
9.
सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।
10.
जप माला छापै तिलक, सरै न एकौ काम।
मन काँचे नाचै बृथा, साँचै राँचे रामु।।
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मित्र लेखक ने प्रेमचंद की मुस्कान को अधूरी इस कारण कहा है क्योंकि वह नकली थी। वह अपने चेहरे पे हँसी लाने की कोशिश कर रहे थे। वह अंदर से दुखी थे पर फोटो खिंचाने के लिए हँस रहे थे।
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