बिहारी
बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़यो न जाय।।
संगति सुमति न पावहीं, परे कुमति के धंध।
राखो मेलि कपूर में, हींग न होत सुगंध।।
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कवि बिहारी कहते हैं कि कोई भी बिना गुण के बड़ा नहीं होता बिना गुण के बड़ाई नहीं पा सकता। जैसे धतूरे को भी कनक कहते है , लेकिन धतूरे से गहने नहीं गढ़े जा सकते हैं, वहीं कनक सोने को भी कहते हैं । अतः नाम एक होने से गुण तो नहीं आ पाते। कुमति के धन्धे में लगे यदि तो वह सुमति के साथ रहकर भी अच्छा नहीं बन सकता है। यदि कपूर को हींग के साथ रखने से कपूर की गंध हींग में नहीं चढ़ पातीं है।
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