बिहारी की काव्य भाषा एवं दोहे पर विचार कीजिए
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रीतिकाल के अन्य कवियों का ध्यान जहाँ शिल्प पक्ष पर अधिक रहा, वहीं बिहारी के यहाँ अनुभूति एवं अभिव्यक्ति पक्ष दोनों मज़बूत हैं। इसी प्रकार, बिहारी की अलंकार योजना भी विशिष्ट है। उनका काव्य अलंकारों की विविधता हेतु प्रसिद्ध है जहाँ रूपक, उपमा विरोधाभास व अतिशयोक्ति की छटा देखने को मिलती है।
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रीति काल के प्रसिद्ध कवि बिहारी का काव्य अपनी अनेक विशेषताओं के कारण चर्चाका विषय बना रहा है। रीतिकाल के अनेक कवियों ने केंवल श्रृगार को ही रस राजस्व सिद्ध करने का प्रयास किया है। जबकि बिहारी ने श्रृंगार को शिखर तक पहुचाने के साथ साथ भक्ति और नीति का भी सुनदर काव्यानुभूतियों को व्यक्त किया है। बिहारी का एक ही ग्रन्थ ‘‘ बिहारी सतसई उनकी महत कीर्ति का आधार है। आचार्य शुक्ल के अनुसार यह बात साहित्य , क्षेत्र के इस तथ्य की स्पष्ट घोषणा कर रही है कि किसी कवि या यश उसकी रचनाओं के परिणाम से नहीं होता गुण के हिसाब से होता है।
बिहारी की सतसई में श्रृंगार , भक्ति नीति का काव्यनुभूति प्रकृति चित्रण की व्यापकता , विभिन्न ज्ञान के विषयों को सरलता पूर्वक काव्य के योग्य बनाकर प्रभावी ढ़ंग से प्रस्तुत किया गया है। बिहारी के काव्य की विशेषताओं के भाव व कला पक्ष दोनों सबल दिखाई देता है।
बिहारी के काव्य का भाव पक्ष
बिहारी के काव्य की रससिद्धि
हिन्दी साहित्य के रीति काल के महाकवि बिहारी श्रृंगारिक कवि थे। इसी कारण उनकी रससिद्धि के कई आधार कवि थे परन्तु इन आधारों के विवेचन से पहले रससिद्धि के अर्थ को समझा लेना आवश्यक है।
रससिद्धि का अर्थ
रससिद्धि शब्द रस हो सिद्ध शब्दों से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है। काव्य में रस की सिद्धि प्राप्त होना। सामान्तः काव्य में रस की सिद्धि तब प्राप्त होती है। जब कवि रस के सभी अंगों व अंगों से जुड़े उपकरणों और उपादानों का समग्र्रता के साथ ग्रहण करता हैं बिहारी के काव्य में रससिद्धि को स्थान पद देखा जा सकता है।
इस आधार पर रससिद्धि कवि वह है जो अपने काव्य में रस के अवयवों , उपादानों और उनसे जुड़े हुऐ सदर्भो को रसात्मक शैली में प्रस्तुत करता है। वह रससिद्धि कवि होता है। और उस का काव्य रससिद्धता का पर्याय बना जाता है। बिहारी एक रससिद्ध कवि है। उनके काव्य में रस सिद्धता का प्रमाणिकता करने वाले उपादनों में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों का निरूपण , नायक नायिकाओं की स्थिति का विवेचन , हाव भाव और अनुभवों का चित्रण किया है। इसलिए बिहरी को रससिद्ध कवी कहा जाता है।
बिहारी सतसई में प्रधान रस श्रृंगार है कुछ शोध कर्ता विद्वानों ने बिहारी सतसई के 712 दोहों मे से लगभग 600 दोहे श्रृंगार रस से परिपूर्ण बताये है। परन्तु इस संबंध में विवाद है। श्रृंगार रस की प्रधानता के साथ साथ बिहारी सतसई में भक्ति रस अन्योक्तियों और नीति से संबंधित दोहे भी मिल जाते है। परन्तु प्रधानता श्रृंगार रस की ही है।
श्रृंगार रस
श्रृंगार रस सभी