History, asked by pk72500318, 4 months ago


बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपायों का वर्णन करें।​

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Answered by abhishek36768
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Answer:

sarkar change kr do jldi se jldi

Answered by lakshya6484
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Explanation:

यह सच है कि मगध साम्राज्य के काल में बिहार की प्रमुखता रही। शेरशाह ने बिहार (सासाराम) को प्रमुखता दी और अकबर के जमाने में भी ‘आइने अकबरी’ के अनुसार बिहार को लगभग एक सूबे का दर्जा हासिल रहा। लेकिन, कम्पनी शासन के आगमन के साथ ही बिहार की हैसियत में गिरावट शुरू हो गयी थी और सन् 1836 ई. के आते-आते बिहार बंगाल का एक कनीय उपग्रह बन गया। जबकि यह पहले उत्तर प्रदेश के साथ उसी रूप में वर्गीकृत था। इस तरह बिहार कभी इस पड़ोसी प्रान्त और कभी उस पड़ोसी प्रान्त(उत्तर प्रदेश, बंगाल और उड़ीसा) के साथ जोड़ दिये जाने के कारण एक लम्बे अरसे तक अपनी अलग पहचान बनाने में असमर्थ रहा और आर्थिक विकास भी नहीं कर सका। 1 अप्रैल 1912 को बिहार को बंगाल से अलग कर दिया गया। फिर बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक प्रान्त बिहार बना। जिसकी राजधानी पटना बनी। 1935 में उड़ीसा को बिहार से अलग कर दिया गया। बिहार में पड़ोसी राज्यो की तुलना में उच्च शिक्षा का प्रसार बहुत बाद में हुआ। पहले यहाँ न तो कोई मेडिकल कॉलेज था और न इंजीनियरिंग कॉलेज। बिहार के अलग प्रान्त बनने से पहले शिक्षा के लिए निर्धारित निधि या अनुदान का अधिकांश भाग बंगाल के पल्ले में पड़ जाता था। अंग्रेजी शासन काल में विश्वविद्यालयों की स्थापना के इतिहास से भी यह मालूम होता है कि प्रमुख पड़ोसी राज्यों की तुलना में कई दशक के बाद बिहार के प्रथम विश्वविद्यालय (पटना विश्वविधालय) की स्थापना हुई। इन लंबे अंतराल के कारण बिहार की दो-तीन पीढ़ियां देश के बहुत ही निर्णायक दौर में उच्च शिक्षा के अर्जन में पीछे पड़ गयी। कहा जाता है कि औधोगिक विकास, आधुनिकता और सामाजिक गतिशीलता रेल की पटरियों के साथ दौड़ती है। किन्तु दुर्भाग्य ऐसा कि जब ब्रिटिश राज में पूर्वांचल में रेल की पटरियां बिछाई गयी तो वो भी रानीगंज तक आकर ही प्रथम चरण में रुक गयीं। क्योंकि रानीगंज में ‘लेसर ऐश कंटेट’ वाला उत्तम कोटि का कोयला मिलता था। स्वतंत्रता के बाद 2000 में झारखंड राज्य भी इससे अलग कर दिया गया। भारत के चार प्रमुख महानगरों दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई और मद्रास (चेन्नई) में से कोई भी महानगर बिहार में अवस्थित नहीं है, जहाँ मास मीडिया के बड़े-बड़े गढ़ अवस्थित हैं। इसलिए महानगरों में स्थित दूरदर्शन केन्द्रो और राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रो में न तो बिहार की अच्छाइयों को और ना ही बिहार के नेताओं, विद्वानों, कवियों, कलाकारों, जन-सेवकों या अन्य विभूतियों को उतना स्थान नहीं मिल पाता है। जितना कि प्रमुख महानगर वाले राज्यों को मिलता है। इन कारणों से बिहार में जो पिछड़ापन बरपा हुआ है, उस पिछड़ेपन से बिहार अभी पूरी तरह बाहर नहीं निकल सका है। बिहार को अपनी पहचान दिलाने के लिए बिहार के युवाओं, सरकार और मीडिया को जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा।

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