बिहारी के दोहों की भाषागत विशेषता लिखिए
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बिहारी के दोहों की भाषागत विशेषतायें
बिहारी हिंदी के महान कवि थे। वे रीतिकाल युग के मुख्य कवियों में से एक थे। उनकी रचना का नाम सतसई है जो कि एक मुक्तक काव्य है।
बिहारी के सभी दोहे बेहद सुंदर और काव्यागत दृष्टि से रसात्मक और श्रंगारपरक हैं। बिहारी के दोहों के शाब्दिक अर्थ व्यापकता लिये होते थे। उनके दोहे भाषागत दृष्टि से उत्कृष्ट कोटि के हैं।
उनके दोहों के संग्रह सतसई में ब्रजभाषा का उपयोग हुआ किया है। उनके समय में उस क्षेत्र में ब्रजभाषा बहुत अधिक प्रचलित थी। उनके दोहों के संग्रह सतसई को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग नीति विषयक, दूसरा भाग भक्तिविषयक, तीसरा भाग श्रंगारपरक विषयक है।
बिहारी के दोहों की साहित्यिक भाषा ब्रज रही है। लेकिन उनके दोहों में पूर्वी हिंदी, बुंदेलखंडी, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्द भी मिलते हैं।
बिहारी के दोहों में रस, अलंकार, मुहावरों का सुंदरता से उपयोग किया गया है। उनके दोहों हास्य, करुणा, शांत आदि रसों का भाव मिल जाता है लेकिन उनेक अधिकतर दोहों में श्रंगार रस को ही प्रधानता दी गयी है। अंलकारों का उन्होंने बेहद कुशलता से उपयोग किया है, उनके अधिकतर दोहों कोई न कोई अलंकार अवश्य दृष्टगोचर हो जाता है।
बिहारी के दोहों ज्यादातर श्रंगार परक रहे हैं। उन्होंने श्रंगार के मिलन और विरह पक्ष का अद्भुत समन्यवय स्थापित किया है। उन्होंने भक्ति भावना दोहों को भी प्रधानता दी है, और उनकी भक्ति का भाव श्रीकृष्ण रहे हैं। उन्होंने राधा-कृष्ण के प्रेम को भक्ति के रस में पिरोया है। बिहारी नीतिविषयक दोहों की भी रचना की है लेकिन उनकी संख्या कम है।