बिहारी लाल की सुंदरियों भावना का संक्षिप्त परिचय
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बिहारी मूलतः श्रृंगारी कवि हैं। मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय। जा तन की झाई परे, स्याम हरित दुति होय॥ मति न नीति गलीत यह, जो धन धरिये जोर।
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