बिहार में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाओं का उल्लेख करें
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कृषि उत्पाद की अधिक मात्रा गाँवों में उपलब्ध होती है। अतः कृषि उत्पाद पर आधारित उद्यम का विकास गाँवों में सुनिश्चित होना चाहिए। कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ गाँवों के बेरोजगार ग्रामीण युवकों को नये-नये उद्यम लगाने के लिए प्रेरित करना भी आवश्यक है। इस प्रकार के प्रयास बेरोजगार ग्रामीणों को गाँवों से पलायन रोकने तथा अलगाव एवं अन्य सामाजिक बुराईयों में भी कमी आयेगी। कृषि उत्पादों में अनेक ऐसे उद्योग है जिन्हें ग्रामीण एवं बेरोजगार बन्धु अपनाकर अपना सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहतर बना सकते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में कई तरह के उद्योग लगाये जा सकते हैं जैसे मशरुम उद्योग, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, पौलटरी फार्म उद्योग, जैविक गुड़ उद्योग, आलू एवं सब्जी आधारित उद्योग, डेयरी उद्योग, लकड़ी का फर्नीचर, फल एवं फूल उद्योग आदि जिसमें प्राथमिक कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण कर उनका मूल्यवर्धन किया जा सकता है।
गेंहूं प्रमुख खाद्य पदार्थों में एक है तथा आर्थिक विश्लेषण से Kkr हुआ है कि इसका प्रारंभिक बाजार मूल्य, उत्पादन मूल्य के लगभग ही होता है। पारिवारिक उपभोग आवश्यकता से ज्यादा पैदावार अनेक ऐसे उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं जिनमें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिल सकता है। विशेषकर बेकरी उद्योग, दलिया उद्योग, सूजी उद्योग, बिस्कुट उद्योग, मैदा उद्योग आदि। इस तरह के उद्योगों की स्थापना से कौड़ियों के मोल गेंहूं बेचने की नौबत नहीं आयेगी तथा गेंहू उत्पादन में घाटे को मुनाफा में बदला जा सकता है।
भारत में सबसे अधिक मक्का बिहार में पैदा होता है इसलिए बिहार को देश का • नया मक्का का कटोरा भी कहा जाता है और गांवों का मक्का बहुत कम मूल्य देकर उद्योगियों द्वारा, आंध्रप्रदेश, तेलंगना, मध्यप्रदेश एवं अन्य प्रदेशों में ले जाया जाता है और वहाँ मक्का को प्रोसेसिंग कर कार्न फ्लेक्स, मछली दाना, मुर्गी दाना, पशु आहार, पापकार्न इत्यादि तैयार कर अधिक मूल्य पर पुनः गावों में खपत के लिए लाया जाता है यदि इन उद्योगों की व्यवस्था यहाँ के गांवों में किया जाय तो किसानों को मक्के का अधिक मूल्य मिलने के साथ-साथ कम दाम पर पशु आहार भी उपलब्ध हो जायेगा।
दलहन पर आधारित अनेक उद्योग है जिन्हें सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। दलहनी फसलों में चना, मटर, उड़द, मूंग, अरहर, मसूर आदि फसलें है एवं लाभ की दृष्टिकोण से विशेष महत्व दिया जाना चाहिए। चने से बेसन उद्योग, भूने हुए दाने के पैकेट, अंकुरित दाने के पैकेट, नमकीन के पैकेट, सत्तु उद्योग आदि लगाये जा सकते हैं। मटर, उड़द व मसूर से दाल तथा बड़ा और नमकीन, मूंग की दाने से नमकीन तथा लड्डू आदि बनाने के घरेलू उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं।
सूरजमुखी एक नकदी फसल है एवं इसका तेल हृदय रोगियों के लिए विशेष महत्व स्थान रखता है। सूरजमुखी से तेल निकालने का उद्योग सफलतापूर्वक किया जा सकता है। इसकी खेती के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है। कुसुम का तेल भी हृदय रोगियों के लिए सूरजमुखी के समान ही फायदेमन्द है। सूरजमुखी तथा कुसुम के तेल में बनी पकवान देशी घी से बने पकवान के समान ही स्वादिष्ट होते हैं। सूरजमुखी तथा कुसुम की खेती का प्रचलन अब तेजी से बढ़ता जा रहा है। तिल के तेल का प्रयोग दीपक जलाने, मालिश करने एवं अनेक खाद्य पदार्थ बनाने हेतु किया जाता है।
धार्मिक अनुष्ठानों में भी तिल का उपयोग किया जाता है। तिल के स्वादिष्ट लड्डू बनाये जाते हैं। अतः तिल से सम्बन्धित अनेक खाद्य पदार्थ के उत्पादन के उद्योग लगाये जा सकते हैं। तिलहनी फसलों में राई, तोरी एवं सरसों का महत्व किसानों एवं पशुओं के जीवन में काफी उपयोगी एवं लाभदायक है। सरसों का तेल और खल्ली दोनो महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। सरसों की खल्ली पशुओं को खिलाने के काम में आती है। सरसो का तेल बिहार प्रदेश में सबसे महत्वपूर्ण खाद्य तेल फसल के रुप में मानी जाती है एवं उपयोग में लाई जाती है। जिससे की तेलहनी फसलों का उद्योगीकरण कर किसान अच्छी मुनाफा ले सकते है।
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