बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
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बाह्याडम्बरों की अपेक्षा स्वयं को पहचानने की बात निम्न पंक्तियों मे कही गयी है --
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।
इन पंक्तियों मे कहा गया है की हिन्दू और मुस्लमान दोनों लोग अपने अपने धर्म को बड़ा दिखाने के लिए बाह्याडम्बरों मे उलझें रहते है, कोई टोपी पहनता है तो कोई तिलक लगता है इसी वज़ह से वह अपने अपने वजूद को भूल गए है|
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