बाहयादम्बर , मूर्तिपूजा के बारे मे कबीर क्या कहते है ?
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पर समय का फेर देखिये जिन कबीर दास ने जीवन भर मूर्ति पूजा का विरोध किया ,उन्ही कबीर के चेले रामपाल ने कबीर की ही मूर्ति बनाकर, उसी की मूर्ति को भोग लगाकर , उस भोग को प्रसाद कहकर अपने चेलो में बाँटना शुरू कर दिया।
रामपाल की दुकान चल निकली तो उसने पहले कबीर को ईश्वर कहा फिर अपने आपको कबीर का अवतार और ईश्वर कहना आरंभ कर दिया।
निराकार ईश्वर की उपासना का कबीर का उपदेश उनके बीजक तक सिमट कर रह गया और गुरु के गुड़ के चेलो ने पूरी शक्कर बना डाली।
रामपाल के डेरे में हर रोज कबीर दास की मूर्ति/चित्र को भोग लगाना उन्ही की शिक्षा का अपमान करना हैं।
पाखंड को बढ़ावा देने वाला पाखंडी होता हैं और पाखंडी को गुरु अथवा ईश्वर कहने वाला मुर्ख होता हैं। कुछ मुर्ख इस लेख को पढ़ रहे होगे और कुछ पढ़ चुके होगे , उसके बाद भी कबीर दास का अपमान करना अज्ञानता की निशानी हैं।