बुजुर्गों के प्रति हमारा कर्तव्य
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हमारे बुजुर्ग हमारे घर व परिवार की शान हैं। जिस घर में बड़े बुजुर्गों को मान दिया जाता है वह घर भरपूर और कुशल रहता है। बुजुर्गों के आशीर्वाद से हमारे काम सफल होते हैं और हम उन्नति करते हैं। वे हमारे घर की बुनियाद हैं। यदि बुनियाद सकुशल होगी तो ईमारत को बल और लाभ प्राप्त होगा।
माता पिता बच्चों का पालन पोषण करते हैं। बच्चों की खुशी के लिए वे अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं। बच्चे उनकी आँखों के तारे होते हैं। वे अपने बच्चों के लिए ऊँचे ऊँचे अरमान रखते हैं और सपने सजाते हैं। वे अपना आराम त्याग करके बच्चों को आराम देते हैं।
इसलिए वे पूज्य होते हैं। हमें उनका आदर करना चाहिए। बड़ी उम्र में शरीर कमज़ोर हो जाता है और बीमारियाँ घेर लेती हैं। ऐसे में बुजुर्गों को सहारा देना हमारा कर्तव्य है। हमें उनके साथ प्रेम पूर्वक व्यव्हार करके उन्हें मानसिक संतोष प्रदान करना चाहिए।
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बुजुर्ग शब्द दिमाग में आते ही उम्र व विचारों से परिपक्व व्यक्ति की छवि सामने आती है । बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं । परिवार के बुजुर्ग लोगों में नाना-नानी, दादा-दादी, माँ-बाप, सास-ससुर आदि आते हैं । बुजुर्ग घर का मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों, बहुओं, बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं कर पाते हैं और उनके कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं जिसे वे पसंद नहीं करते हैं । वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते हैं या उलटकर जवाब देते हैं । जिस बुजुर्ग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है ।
एक समय था जब बुजुर्ग को परिवार पर बोझ नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था । आधुनिक जीवन शैली, पीढ़ियों में अन्तर, आर्थिक-पहलू, विचारों में भिन्नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढ़ी निष्ठुर और कर्तव्यहीन हो गई है । जिसका खामियाजा बुजुर्गों को भुगतना पड़ता है । बुजुर्गों का जीवन अनुभवों से भरा पड़ा है, उन्होंने अपने जीवन में कई धूप-छाँव देखे हैं जितना उनके अनुभवों का लाभ मिल सके लेना चाहिए । गृह-कार्य संचालन में मितव्ययिता रखना, खान-पान संबंधित वस्तुओं का भंडारण, उन्हें अपव्यय से रोकना आदि के संबंध में उनके अनुभवों को जीवन में अपनाना चाहिए जिससे वे खुश होते हैं और अपना सम्मान समझते हैं ।
बुजुर्ग के घर में रहने से नौकरी पेशा माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल व सुरक्षा के प्रति निश्चिंत रहते हैं । उनके बच्चों में बुजुर्ग के सानिध्य में रहने से अच्छे संस्कार पल्लवित होते हैं । बुजुर्गों को भी उनकी निजी जिंदगी में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । उनके रहन-सहन, खान-पान, घूमने-फिरने आदि पर रोक-टोक नहीं होनी चाहिए । तभी वे शांतिपूर्ण व सम्मानपूर्ण जीवन जी सकते हैं । बुजुर्गों में चिड़चिड़ाहट उनकी उम्र का तकाजा है । वे गलत बात बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, इसलिए परिवार के सदस्यों को उनकी भावनाओं व आवश्यकता को समझकर ठंडे दिमाग से उनकी बात सुननी चाहिए । कोई बात नहीं माननी हो तो, मौका देखकर उन्हें इस बात के लिए मना लेना चाहिए कि यह बात उचित नहीं है । सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई ऐसी बात न करें जो उन्हें बुरी लगे ।
बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करने से घर में अशांति बनी रहती है । इस जीवन संध्या में उन्हें आदर व अपनेपन की जरूरत है । इनकी छत्रछाया से हमारी सभ्यता व संस्कृति जीवित रह सकती है । बच्चों को अच्छे संस्कार व स्नेह मिलता है । बालगंगाधर तिलक ने एक बार कहा था कि ‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है ।’ अंत में-
‘फल न देगा न सही,
छाँव तो देगा तुमको
पेड़ बूढ़ा ही सही
आंगन में लगा रहने दो ।’
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