Economy, asked by t5801126, 3 months ago

बाजार की मांग और व्यक्तिगत मांग में अंतर बताइए ​

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Answered by kritirani8987
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Answer:

किसी वस्तु की बाजार में सभी व्यक्तिगत क्रेताओं द्वारा दी गई कीमत पर दिये गये समय में मांगी जाने वाली कुल मात्रा उस वस्तु की बाजार मांग कहलाती है। मान लीजिये, बाजार में आम खरीदने वाले वर्षा, विभा और सौम्या केवल तीन ही क्रेता हैं तो बाजार मांग इन तीनों क्रेताओं की व्यक्तिगत मांग अनुसूचियों का योग होगी।

Answered by sadiaanam
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Answer:

दोनों शब्दों में अन्य प्रमुख अंतर यह है कि व्यक्तिगत मांग एक उपभोक्ता द्वारा मांग की गई मात्रा को संदर्भित करती है जबकि बाजार की मांग बाजार में सभी उपभोक्ताओं द्वारा मांग की गई मात्रा को संदर्भित करती है।

Explanation:

बाजार में किसी विशेष कीमत पर वस्तु की मांग सभी उपभोक्ताओं की कुल मांग को मिलाकर की जाती है। बाजार की मांग बाजार में सभी उपभोक्ताओं द्वारा दी गई वस्तु के लिए मांग की गई कुल मात्रा है। सकल मांग एक अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग है।

व्यक्तिगत मांग वक्र - व्यक्तिगत मांग वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु की मांगी गई मात्रा को प्रकट करता है।

माँग (demand) किसी माल या सेवा की वह मात्रा होती है जिसे उस माल या सेवा के उपभोक्ता भिन्न कीमतों पर खरीदने को तैयार हों। आमतौर पर अगर कीमत अधिक हो तो वह माल/सेवा कम मात्रा में खरीदी जाती है और यदि कीमत कम हो तो अधिक मात्रा में। इसलिए अक्सर किसी क्षेत्र के बाज़ार में किसी माल/सेवा की माँग को उसके माँग वक्र (demand curve) के रूप में दर्शाया जाता है

माँग वक्र केवल एक उपभोक्ता के लिए भी देखा जा सकता है और यह उपयोगिता (utility) पर आधारित है, यानि वह संतुष्टि जो किसी उपभोक्ता को किसी माल या सेवा के उपभोग से मिलती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को भूख लगी हो, तो उसे रोटियाँ खाने से संतुष्टि मिलती है। उसके द्वारा खाई जाने वाली प्रथम रोटी उसे बहुत संतुष्टि देती है, दूसरी रोटी उस से ज़रा कम संतुष्टि देती है, और तीसरी उस से भी कम। यह चीज़ किसी भी माल या सेवा की खपत में दिखती है। यदि पेट्रोल महंगा जो तो उपभोक्ता उसका प्रयोग बचकर करता है। वही जब थोड़ा-सा सस्ता हो जाए, तो उसका प्रयोग अधिक खुलकर करता है। अगर पेट्रोल बिलकुल मुफ्त कर दिया जाए, तो उसकी खपत पर उपभोक्ता कोई भी अंकुश नहीं लगाता। यह तथ्य ह्रासमान प्रतिफल के सिद्धांत (law of diminishing returns) के नाम से जाना जाता है - किसी भी माल या सेवा की उपयोगिता उसकी बढ़ती मात्रा में खपत से घटती जाती है। यही घटती उपयोगिता उस उपभोक्ता द्वारा कीमत देने की सम्मति में दिखती है। अधिक कीमत पर उपभोक्ता कम खरीदता है और कम कीमत पर अधिक

माँग निम्नांकित तत्वों से प्रभावित होती है --

(१) आय में परिवर्तन,

(२) जनसंख्या में परिवर्तन

(३) द्रव्य की मात्रा में परिवर्तन,

(४) धन के वितरण में परिवर्तन,

(५) व्यापार की स्थिति में परिवर्तन,

(६) अन्य प्रतिस्पर्द्धी वस्तुओं के मूल्यों में परिवर्तन

(७) रुचि तथा फैशन में परिवर्तन और

(८) ऋतुपरिवर्तन।

मूल्यपरिवर्तन के कारण होने वाली माँग की मात्रा में परिवर्तन उपभोक्ता की आय, वस्तु के मूल्यस्तर, आय के अंश का संबंद्ध वस्तुश पर विनियोजन, वस्तु के प्रयोगों की मात्रा, स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धि, वस्तु के उपभोग की स्थगन शक्ति, समाज में संपत्ति के वितरण, समाज के आर्थिक स्तर, संयुक्त माँग (Joint Demand) की स्थिति तथा समय के प्रभाव पर निर्भर करती है। माँग की लोच का अध्ययन उत्पादकों, राजस्व विभाग, एकाधिकारी उत्पादकों तथा संयुक्त उत्पादन (Joint Production) के लिये विशेष महत्वपूर्ण है। माँग की लोच निकालने का प्रो॰ फ्लक्स का निम्नलिखित सिद्धांत विशेष व्यवहृत होता है:

माँग की लोच = माँग में प्रतिशत वृद्धि /मूल्य में प्रतिशत वृद्धि

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