बाजार दर्शन लेखक का सार बताते हुए इसके उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए
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‘बाजार दर्शन’ लेख का सार और इसका उद्देश्य...
‘बाजार दर्शन’ लेख जैनेंद्र द्वारा लिखा गया एक विवेचनात्मक लेख है। जिसमें उपभोक्तावाद और बाजारवाद पर गहरी चोट की गई है। लेखक के अनुसार बाजारवाद का जादू अगर किसी के सर पर चढ़ जाए तो उसपर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। हमें सदैव अपनी जरूरत के अनुसार ही बाजार जाना चाहिए। बिना वजह और बिना जरूरत के केवल दिखावे की चकाचौंध में आकर पैसे का प्रदर्शन करने के लिए बाजार नहीं जाना चाहिए।
लेखक के बहुत से मित्र ऐसे थे जो बाजार केवल अपनी धन के प्रदर्शन करने के लिए जाते थे। उन्हें बहुत सी चीजों की आवश्यकता नहीं होती लेकिन वे फिर भी बाजार जाते और बेकार की चीजें ले आते। ऐसा करके वे अपनी परचेसिंग पावर यानी क्रय शक्ति का प्रदर्शन करते। वे यह दर्शाने की कोशिश करते कि उनके पास पैसा है। यही दिखावा, यही पाखंड बाजारवाद को जन्म देता है क्योंकि तब बाजारवाद हावी हो जाता है। व्यापारी लोग ग्राहकों को ठगने की जुगत में रहते हैं। बाजार में शोषण होने लगता है। कपटी व्यक्ति सफल हो जाता है और जो निष्कपट है वह इस बााजारवाद का शिकार हो जाता है।
लेखक अपनी पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति का उदाहरण देता है, जिनके अंदर संतोष है और वह एक निश्चित मात्रा में ही कमाई करते हैं, उससे अधिक कमाने की कोशिश नहीं करते। इससे उन पर बाजारवाद हावी नही हो पाता, क्योंकि वे अत्याधिक धन का संचय करने की प्रवृ्त्ति में नही पपड़ते। इससे उन्हें दिखावा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
लेखक के अनुसार बाजार में लोग अपनी जरूरत की चीजें लेने के हिसाब से नहीं बल्कि अपने पैसे का प्रदर्शन करने के हिसाब से जाते हैं। वे ही बाजारवाद के जन्म देने के लिये उत्तरदायी होते हैं।
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