बड़ों की बातों को मानना चाहिए या बड़ों की बातों को माननी चाहिए?
Answers
Explanation:
आज्ञा-पालन का मतलब है कि किसी तरह का प्रभुत्व है, कोई अधिकारी है। हो सकता है वे माता-पिता हों, पण्डित हों, भगवान हों या कोई ग्रन्थ हो। आज्ञाकारी होने का मतलब है कि आप ये मानकर चलते हैं, कि जो कुछ भी अधिकारी ने या आज्ञा देनेवाले ने कहा है - वह सही है। अगर आप अधिकारी को सत्य मान लेंगे, तो मानवीय बुद्धि नष्ट हो जाएगी। केवल सत्य का ही प्रभुत्व होना चाहिए। हमारी अगली पीढ़ी को ऐसा कुछ करना चाहिए, जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की हो। हम एक नई पीढ़ी को इसलिए पैदा करते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि इस पीढ़ी में एक नई संभावना है। अगर उनमें कोई नई संभावना न हो, अगर वे केवल हमसे हर स्तर पर निर्देश लेते रहें, और बस वही करें जो हम चाहते हैं, तो ऐसी नई पीढ़ी किसी काम की नहीं है। हम जिसे ‘नेक्स्ट जनरेशन’ कहते हैं, फिर तो उसमें ‘नेक्स्ट’ जैसी कोई बात ही नहीं रह जाएगी। वह बस अतीत का ऐसा कब्रिस्तान होगा, जो भविष्य में सिर उठा रहा होगा, जो जीवन की बर्बादी होगी।
खुद को प्रेम और आदर के योग्य बनाना होगा
वे लोग, जो अपने प्रभुत्व या अधिकार जमाने वाले स्वभाव के कारण अपने बच्चों से जरुरी प्रेम और स्नेह नहीं हासिल कर पाते, वे आज्ञा-पालन की माँग करते हैं। हमें खुद को प्रेम, स्नेह और आदर के योग्य बनाना होता है। ख़ास कर के माता-पिता और बच्चों के सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण है। जिस पल आप बच्चों से आज्ञाकारी होने की माँग करेंगे, आप प्रभुत्व या अधिकार ज़माना शुरू कर देंगे। अगर आप प्रभुत्व जमाने लगेंगे, तो आपको कभी पसंद नहीं किया जाएगा। अगर आपसी रिश्तों में नापसंदगी आ जाती है, तो वह रिश्ता बदसूरत हो जाता है। अधिकार जमाने के रवैये से समाज और संस्कृति ठहर सी जाती है, और कुछ समय बाद मिटने लगती है। एक समाज सिर्फ तभी विकसित हो सकता है, जब युवा पीढ़ी कुछ ऐसा करें, जो माता-पिता ने कभी सोचा भी न हो।
पुरानी रीतियाँ तोड़ दे, या उनका पालन करें?
तो फिर, क्या हमें पुराने नियमों और नीतियों का पालन करना चाहिए या कुछ नया करना चाहिए? इस तरह की कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए कि पुरानी रीतियों को जबरदस्ती तोड़ना ही है, न ही इस बात की बंदिश होनी चाहिए कि चीज़ों को पुराने रीति रिवाजों के अनुसार ही करना है।
किसी ढाँचे के टूटने के लिए जरुरी नहीं कि समाज में भारी उथल-पुथल हो। हमारे सोचने के तरीकों में भी क्रांति आ सकती है। हमें जीवन के हर पहलू को पहले से बेहतर करने की जरूरत होती है।
महत्वपूर्ण यह है कि हर पीढ़ी ये देखे कि वास्तव में क्या करना जरुरी है, और क्या जरुरी नहीं है। अगर आप घर पर जमा हुए कुड़े को बाहर नहीं निकालेंगे, तो कुछ समय बाद पूरा घर कचरे का डिब्बा बन जाएगा। हर दिन, आपको कचरा बाहर फेंकना होगा - सिर्फ तभी घर साफ रहेगा। इसी तरह, अपने जीवन में भी हमें उन चीज़ों को हर दिन बाहर फेंकना होगा जो काम नहीं कर रही। अगर व्यक्तिगत रूप से, या फिर सामजिक स्तर पर हम ऐसा नहीं करते, तो हम एक जगह ठहर कर फंस जाएंगे और कुछ भी कारगर नहीं होगा।
किसी ढाँचे के टूटने के लिए जरुरी नहीं कि समाज में भारी उथल-पुथल हो। हमारे सोचने के तरीकों में भी क्रांति आ सकती है। हमें लगातार यह देखते रहने की जरुरत है कि हम जीवन के हर पहलू को कैसे और बेहतर तरीके से कर सकते हैं - सबसे सरल और बुनियादी पहलुओं से लेकर महत्वपूर्ण पहलुओं तक। अगर आप बैठने, सांस लेने, खाने और शरीर की देखभाल करने के सबसे अच्छे तरीकों की खोज कर रहे हैं, तो आप योग करना शुरू कर देंगे। मतलब, आप अपनी शारीरिक और मानसिक खुशहाली तक वैज्ञानिक तरीके से पहुंचना चाहेंगे। सत्य ऐसी चीज़ है, जिसका आप अनुभव करते हैं। अगर आप उसका आविष्कार करेंगे, तो वह झूठ कहलाएगा। अगर आप किसी भी काम को करने के सबसे अच्छे तरीके की ईमानदारी से खोज करेंगे, तो आप एक विज्ञान तक पहुँच जाएंगे। वरना, आप उस काम के बारे में एक फ़िलोसोफी बनाने लगेंगे। हो सकता है पुरानी फिलोसोफिस एक समय में तर्कसंगत या उचित रही हों। एक समय पर जो एक फ़िलोसोफी थी, वो समय के बीतने के साथ रीति, फिर नियम, विश्वास और आखिर में धर्म बन गया। इसकी जगह हमें हर चीज़ को अपनी बुद्धि से परखना चाहिए। पर क्या हम हर चीज़ का अंतिम समाधान खोज पाएंगे? शायद नहीं। क्योंकि वास्तविकताएं बदल रही हैं।
आनंद से समाधान विकसित होंगे
एक मौलिक दृष्टिकोण जिसे हम अपना सकते हैं, वो ये है – कि आज हमारे पास इस बात के काफी वैज्ञानिक और मेडिकल प्रमाण मौजूद हैं कि आपका शरीर और आपका दिमाग सबसे बेहतर सिर्फ तभी काम करते हैं, जब आप आनंद में होते हैं।
Answer:
bado ki baato ko manna chahiye .1st one is correct