Sociology, asked by ajaygound395, 6 months ago

बैंक की परिभाषा दीजिये । भारतीय बैंकिंग प्रणाली की प्रमुख विषेषता

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Answered by rekhataimahankar54
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कार्य पर आधारित परिभाषाएँ:

प्रो. गिलबर्ट- ”बैंक पूंजी अथवा सही शब्दों में ”मुद्रा” का व्यवसाय है ।”

प्रो. सरजान पेजट- ”कोई भी संस्था तब तक बैंक नहीं कही जा सकती है जब तक कि वह सामान्य जनता की राशि जमा न करे उसके नाम पर चालू खाते न खोले और अपने ग्राहकों का भुगतान एवं संकलन न करे ।”

प्रो. ए .जी. हार्ट- ”बैंक वह है जो अपने साधारण व्यवसाय में धन प्राप्त करता है और जिससे वह उन व्यक्तियों के चैकों का भुगतान करता है जिनसे या जिनके खातों में वह धन प्राप्त करता है ।”उक्त परिभाषाओं में बैंक के स्थायी व चालू जमा करने, चैकों का भुगतान एवं चैकों के संग्रह करने को महत्व दिया है । किन्तु इनमें बैंक के सबसे महत्वपूर्ण कार्य-ऋण देने एवं साख के व्यवसाय को भुला दिया है । अतः इन परिभाषाओं को पूर्ण नहीं माना जाता है ।

(2) वैधानिकता (Legal) पर आधारित परिभाषाएँ:

ब्रिटिश विनिमय बिल अधिनियम- ”बैंक के अंतर्गत बैंकिंग व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों का एक समूह (नियमित और अनियमित) शामिल होता है ।”

भारतीय बैंकिंग अधिनियम धारा 5 (ब)- ”बैंकिंग से तात्पर्य ऋण देने अथवा विनियोग के लिए जनता से धन जमा करना है जो कि माँग करने पर लौटाया जा सकता है तथा चैक, ड्राफ्ट तथा अन्य प्रकार की आशा द्वारा निकाला जा सकता है ।”

उक्त परिभाषाएँ दोषपूर्ण है क्योंकि:

(अ) इन्होंने बैंक शब्द का अर्थ बताया ही नहीं । ये यह मानकर चलती हैं कि शब्द का अर्थ सभी जानते हैं ।

(ब) इनमें बैंक द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य शामिल नहीं किये गये हैं ।

(3) साख व्यवसाय (Credit Transactions) पर आधारित परिभाषाएँ:

प्रो. क्राउथर- ”बैंकर अपने तथा अन्य लोगों के ऋणों का व्यवसायी होता है । अर्थात बैंकर का व्यवसाय अन्य लोगों से ऋण लेना है । और बदले में ऋण देना एवं इस प्रकार मुद्रा का सृजन करना है ।”

प्रो. सेयर्स- ”बैंक वह संस्था है जिसके ऋणों को अन्य व्यक्तियों के पारस्परिक भुगतान के लिए विस्तृत रूप से स्वीकार किया जाता है ।”

प्रो. फिण्डले शिराज- ”बैंकर वह व्यक्ति या फर्म या कम्पनी है जिसके पास व्यवसाय के लिए ऐसा स्थान हो जहाँ जमा या मुद्रा संग्रह या ड्राफ्ट संग्रह और चैक से भुगतान या वसूल की जाने वाली राशियों के खाते खोले जाते हो अथवा बॉण्ड और धातु के आधार पर मुद्रा के अग्रिम या ऋण लिए जाते हों और विनिमय बिलों व साख पत्रों को कटौती और बिक्री के लिए स्वीकार किये जाते हों ।”

उक्त परिभाषाओं में बैंक का महत्वपूर्ण कार्य केवल साख का निर्माण बताया है । अतः ये परिभाषाएँ बैंक के सही स्वरूप को प्रगट नहीं करती ।

उचित परिभाषाएँ (Proper Definitions):

उपर्युक्त परिभाषाओं में कुछ न कुछ दोष है । अतः वेब्स्टर के शब्दकोष में दी गई परिभाषा को उचित परिभाषा के रूप में रखा जा सकता है ।

वेब्स्टर शब्द कोष- ”बैंक वह संस्था है जो द्रव्य में व्यवसाय करती है एक ऐसा प्रतिष्ठान है जहाँ धन जमा, संरक्षण तथा निर्गमन होता है तथा ऋण एवं कटौती की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर रकम भेजने की व्यवस्था की जाती है ।”

उक्त परिभाषा इसलिए उचित है क्योंकि इसमें ”द्रव्य में व्यवसाय” शब्द का अर्थ अत्यधिक व्यापक लिया गया है । ”द्रव्य के लेन-देन” में बैंक की सभी क्रियाएँ व्यापक रूप से आ जाती है। इस प्रकार बैंक की आदर्श परिभाषा इस प्रकार दी जाती है, ”बैंक वह संस्था है जो अपने ग्राहकों के लिए धन से सम्बन्धित लेन-देन के सभी कार्य करती है ।”

बैंक की विशेषताएँ (Characteristics of Banks):

प्रो. सरजान पेजेट ने किसी व्यक्ति या संस्था को बैंकर होने की निम्नलिखित तीन विशेषताएं बताई है:

(i) मुख्य व्यवसाय (Main Business):

बैंक या बैंकर वह संस्था या व्यक्ति है जो बैंकिंग के काम को ”मुख्य व्यवसाय” के रूप में चलाती है । यदि उसका आर्थिक लेन-देन का काम गौण हो तो वह बैंकर नहीं है ।

(ii) प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि (Popularity):

बैंक या बैंकर वही संस्था या व्यक्ति होता है जो समाज में बैंकर के काम के लिए प्रसिद्ध है ।

(iii) आय का साधन (Source of Income):

कोई व्यक्ति या संस्था बैंकर तभी होती है जब उसकी आय का एकमात्र साधन बैंकिंग व्यवसाय हो । यदि इस व्यवसाय को जीवन निर्वाह के मुख्य साधन के रूप में नहीं अपनाता है तो वह बैंकर नहीं है ।

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