Hindi, asked by prabhageeta3551, 1 year ago

बाढ़ का दृश्य पर निबंध |A New Essay on Flood in Hindi

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Answered by TheSpy
221
बाढ़ का दृश्य पर लघु निबंध

बाढ़ अर्थात् नदी का उफनता हुआ जब अब अपने किनारे से ऊपर ऊपर बहते हुए आम जन जीवन तक पहुँचकर सम्पूर्ण जीवन को अस्तव्यस्त कर देता है तब इसे हम बाढ़ कहते हैं। प्रकृति की लीला भी बड़ी न्यारी है। जब धरती को पानी की प्यास लगती है, तब तो पानी की बूँद भी नहीं बरसती और कभी पानी इतना बरसता है कि नदियाँ उसे अपने किनारों के आँचल में समेट नहीं पातीं। तो गंगा, गोदावरी, गोमती जड़ चेतन के लिए वरदान बनी होती हैं, वही बाढ़ के रूप में अभिशाप बन जाती हैं।
हमारे देश में प्रत्येक वर्ष बाढ़ के कारण जान माल की हानि होती है। करोड़ों रूपयों की हानि इन बाढ़ों के कारण देश को उठानी पड़ती है। जब देश गुलाम था, तो इस प्रकोप का सारा दोष हम अपने गोरे शासको को देते थे। बाढ़ों का प्रकोप कुछ भी कम नहीं हुआ। बाढ़ आने पर हमारी सरकार सहायता कार्य तुरन्त शुरू कर देती है। यह राष्ट्रीय सरकार का कर्त्तव्य भी है। देश में बाढ़ों की रोकथाम के लिए बहुत कार्य होता है। हर वर्ष की बाढ़ों व उनसे होने वाली जन धन की हानि से राष्ट्र का चिन्तित होना स्वाभाविक है। पिछले कुछ वर्षों से इस ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आने कुछ वर्षों में हम इनसे छुटकारा पा सकेंगे, यह आशा अब देशवासियों की लगी हुई है।

बाढ़ के दृश्य का रोमांचक स्वरूप तो गाँवों में दिखाई पड़ता है। एक बार मैं छात्रावास से 15 अगस्त के लघु अवकाश पर गाँव गया हुआ था। घर पहुँचने पर पता चला कि लगातार एक सप्ताह से वर्षा हो रही है। निरन्तर मूसलाधार पानी बरस रहा है। जैसे प्रलय की बरसात हो। इसके कारण ही गंगा का जल भी लगातार बढ़ रहा है। इससे बाढ़ का भयानक दृश्य काल की तरह सबको कंपा रहा है। सबको अब प्राणों के लाले पड़ गए हैं। बाढ़ इस तरह बढ़ रही है, जैसे वह अपने में ही सब कुछ समा लेने के लिए आ रही हो।

मैंने देखा कि अब कुछ ही दूर गंगा का जल भयानक रूप धारण किए हुए बड़ी सी बड़ी ऊँचाई पर चढ़ने के लिए प्रयत्नशील है। गाँव से बाहर के लोग दूर ऊँचे ऊँचे टीलों पर शरण लिए हुए थे। मैं भी घर के सदस्यों की सुरक्षा के लिए उस स्थान को देखने गया, जहाँ जरूरत पड़ने पर शरण ली जा सके। मैंने उस टीले के ऊँचे भाग पर देखा कि गंगा की धार उल्टी दिशा में समुन्द्र की लहरों सी उमड़ती हुई सर्र सर्र करके पलक झपकते ही न जाने दूर हो रही है। फिर दूर से आती हुई अपने काल का समान प्रयास से विध्वंश का रूप लिए दिखाई दे रही है। इस क्रूर और ताण्डवकारी गंगा के जल में कहीं जीवित या मरे हुए पशु आदमी और जीवन की नितान्त आवश्यकताएँ बेरहम विनाश की गोद में बह रही हैं।

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Answered by coolthakursaini36
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                                        बाढ़ का दृश्य

बाढ़ आज के इस विज्ञान के युग में मनुष्य भले ही बड़ी तरक्की कर ली है । आज हम दूसरे ग्रह पर भी पहुंच चुके हैं कई दिनों में होने वाले काम आज कुछ ही मिनटों में कर लेते हैं। अपना निजी काम करने के लिए हमने रोबोट तक बना लिए हैं फिर हम इतना विकास करने के बावजूद प्रकृति की शक्ति के आगे तिनके मात्र हैं कुदरत की शक्ति का अनुभव मेरे जीवन में ना भूलने वाली वो बाढ़ की तबाही है।

7 अगस्त 2018 का दिन था। पिछले 4 दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही थी। मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए उत्तराखंड गया हुआ था।

नदी नालों के पानी का स्तर काफी बढ़ चुका था। स्थानीय प्रशासन द्वारा चेतावनी दी गई कि कोई घर से बाहर ना निकले। हम घर की तरफ वापस आ रहे थे। देखते ही देखते सड़क पर बना पुल बह गया शहर के चारों तरफ पानी ही पानी था। गली मोहल्ले तालाबों में तब्दील हो गए। जिन गाड़ियों पर हम नाज करते हैं, वे घास के तिनकों की तरह बहने लगी I सारी की सारी पहाड़ियां दरकने लगी, भूस्खलन से सारे रास्ते बंद हो गए, हमारी बड़ी-बड़ी मशीनें क्षण में ही बेकार हो गई थी।

बहुत ही भयंकर मंजर था वो, लोग त्राहि त्राहि कर रहे थे, पानी का स्तर बढ़ता ही जा रहा था। कई मंजिला इमारतें जमींदोज हो गई। लोग सहायता के लिए चिल्ला रहे थे। एक क्षण में ही सब कुछ तहस-नहस हो गया था। हमें भी पुलिस के जवानों ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था।

उस दिन की घटना याद करके मैं आज भी घबरा जाता हूं। और सोचता हूं कि प्रकृति से छेड़छाड़ का ही यह परिणाम है, अगर हमने समय रहते इस विषय पर ना सोचा तो ऐसी घटनाएं भविष्य में आम होंगी। अतः हम सबको मिलकर पर्यावरण संरक्षण पर कार्य करना चाहिए एवं प्रकृति के संतुलन को बना कर रखना चाहिए।  

आज के इस विज्ञान के युग में मनुष्य भले ही बड़ी तरक्की कर ली है । आज हम दूसरे ग्रह पर भी पहुंच चुके हैं कई दिनों में होने वाले काम आज कुछ ही मिनटों में कर लेते हैं। अपना निजी काम करने के लिए हमने रोबोट तक बना लिए हैं फिर हम इतना विकास करने के बावजूद प्रकृति की शक्ति के आगे तिनके मात्र हैं कुदरत की शक्ति का अनुभव मेरे जीवन में ना भूलने वाली वो बाढ़ की तबाही है।

7 अगस्त 2018 का दिन था। पिछले 4 दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही थी। मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए उत्तराखंड गया हुआ था।

नदी नालों के पानी का स्तर काफी बढ़ चुका था। स्थानीय प्रशासन द्वारा चेतावनी दी गई कि कोई घर से बाहर ना निकले। हम घर की तरफ वापस आ रहे थे। देखते ही देखते सड़क पर बना पुल बह गया शहर के चारों तरफ पानी ही पानी था। गली मोहल्ले तालाबों में तब्दील हो गए। जिन गाड़ियों पर हम नाज करते हैं, वे घास के तिनकों की तरह बहने लगी।

सारी की सारी पहाड़ियां दरकने लगी, भूस्खलन से सारे रास्ते बंद हो गए, हमारी बड़ी-बड़ी मशीनें क्षण में ही बेकार हो गई थी।


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