बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!
Answers
Answer:
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!
Explanation:
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित हैं। यह उनके प्रगतिवादी दौर की कविता है। इसमें कवि किसान की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करता है।
व्याख्या-स्वाधीन भारत में भी किसान की दुर्दशा में कोई सुधार नहीं हो पाया। वह महाजन के कर्ज के बोझ तले दबा ही रहा। उस महाजन ने अपना पूरा ब्याज तथा मूल पाने के लिए किसान का घर-द्वार तक बिकवा दिया। खेतों से वह पहले ही बेदखल हो चुका था। अब तो उसके बैलों की जोड़ी भी कुर्क हो गई। बैलों की वह जोड़ी उसे बहुत प्रिय थी। रह-रहकर वह उसकी आँखों में चुभ जाती थी।
उसके पास एक सफेद गाय भी थी जिसे वह उजरी कहा करता था। उसका दूध वह स्वयं निकाला करता था। वह गाय किसो अन्य को अपना दूध नहीं निकालने देती थी। वह किसी को अपने पास फटकने तक नहीं देती थी। वह भी बिककर चली गई। किसान का सब कुछ बिक गया। जमींदार और महाजन ने उसे कहीं का न छोड़ा। उसके सुख की खेती उजड़ गई। वह सारी स्थिति अभी भी उसकी आँखों में नाचती रहती है अर्थात् अभी भी उसकी सुखद स्मृति बनी हुई है। अब वह सारा सुख जाता रहा है।
विशेष- 1. जमींदार और महाजनों के अत्याचारों का यथार्थ अंकन हुआ है।
2. ‘रह -रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
3. ‘सुख की खेती उजड़ना, लाक्षणिक प्रयोग है।
4. ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. सीधी-सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।