बाल अपराधियों के प्रति सहानुभूति न्याय संगत है। इसके पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिये
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भारतीय कानून के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर कोई ऐसा कृत्य करें जो समाज या कानून की नजर में अपराध है तो ऐसे अपराधियों को बाल․अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है। किशोरावस्था में व्यक्तित्व के निर्माण तथा व्यवहार के निर्धारण में वातावरण का बहुत हाथ होता है। हमारा कानून भी यह स्वीकार करता है कि किशोरों द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार के लिये किशोर बालक स्वयं नहीं बल्कि उसकी परिस्थितियां उत्तरदायी होती हैं, इसी वजह से भारत समेत अनेक देशों में किशोर अपराधों के लिए अलग कानून और न्यायालय और न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। उनके न्यायाधीश और संबंधित वकील बालमनोविज्ञान के अच्छे जानकार होते हैं। किशोर․अपराधियों को दंड नहीं, बल्कि उनकी केस हिस्ट्री को जानने और उनके वातावरण का अध्ययन करने के बाद उन्हें ष्सुधार गृहष् में रखा जाता है जहां उनकी दूषित हो चुकी मानसिकता को सुधारने का प्रयत्न किए जाने के साथ उनके साथ उनके भीतर उपज रही नकारात्मक भावनाओं को भी समाप्त करने की कोशिश की जाती है। ऐसे बच्चों के साथ घृणित बर्ताव ना अपना कर उनके प्रति सहानुभूति, प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाता है।
सामान्य रुप से देखें तो शहर के विद्यार्थियों से केवल जंगलों के बीच में बसे हुए गॉव के विद्यार्थियों में उद्दंडता, उच्छृंखलता और अनुशासनहीनता आज सामान्य हो गयी हैं। भावी पीढ़ी के इन कर्णधारों के चरित्र की झॉकी ले तो छुटपन से ही अश्लीलताओं, वासनाओं, दुर्व्यसनों की र्दुगन्ध उड़ती दिखाई देती है। छोटे- छोटे बच्चों को बीडी पीते गुटका खाते देखकर ऐसा लगता है कि सारा राष्ट बीडी पी रहा है, नशा कर रहा है युवतियों के पीछे अश्लील शब्द उछालता हैं, तो ऐसा लगता है कि सम्पूर्ण राष्ट काम वासना से उद्दीप्त हो रहा है। बडे आश्चर्य कि बात है कि आज के चार , पॉच, सातवें दर्जे के छोटे-छोटे बच्चे -बच्चियों जिन्हें उम्र का एहसास तक नहीं है वर्जनाओं और मर्यदाओं की सभी सीमाओं को पीछे छोड़ चुके हैं।
बाल- अपराधों की बढती संख्या भविष्य के लिए खतरे का संकेत हैं। बच्चे भविष्य की धरोहर है, लेकिन सामाजिक कमजोरियों और सरकार के दलमल रवैये के चलते हमारी यह धरोहर लगातार पतन के रास्ते आगे बढ़ती जा रही हैं बाल अपराधों की ब़ढती संख्या हमारे समाज के माथे एक ऐसा कलंक है जिससे तत्काल निजात पाने की जरुरत है। सामाजिक स्तर पर भी इसके अलग से कदम उठाने की आवश्यकता है इसके साथ- साथ माता पिता को भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाने की जरुरत है अन्यथा हमारे देश का भविष्य खराब होता रहेगा(^^)(^^)(^^)
Hope it helps you
सामान्य रुप से देखें तो शहर के विद्यार्थियों से केवल जंगलों के बीच में बसे हुए गॉव के विद्यार्थियों में उद्दंडता, उच्छृंखलता और अनुशासनहीनता आज सामान्य हो गयी हैं। भावी पीढ़ी के इन कर्णधारों के चरित्र की झॉकी ले तो छुटपन से ही अश्लीलताओं, वासनाओं, दुर्व्यसनों की र्दुगन्ध उड़ती दिखाई देती है। छोटे- छोटे बच्चों को बीडी पीते गुटका खाते देखकर ऐसा लगता है कि सारा राष्ट बीडी पी रहा है, नशा कर रहा है युवतियों के पीछे अश्लील शब्द उछालता हैं, तो ऐसा लगता है कि सम्पूर्ण राष्ट काम वासना से उद्दीप्त हो रहा है। बडे आश्चर्य कि बात है कि आज के चार , पॉच, सातवें दर्जे के छोटे-छोटे बच्चे -बच्चियों जिन्हें उम्र का एहसास तक नहीं है वर्जनाओं और मर्यदाओं की सभी सीमाओं को पीछे छोड़ चुके हैं।
बाल- अपराधों की बढती संख्या भविष्य के लिए खतरे का संकेत हैं। बच्चे भविष्य की धरोहर है, लेकिन सामाजिक कमजोरियों और सरकार के दलमल रवैये के चलते हमारी यह धरोहर लगातार पतन के रास्ते आगे बढ़ती जा रही हैं बाल अपराधों की ब़ढती संख्या हमारे समाज के माथे एक ऐसा कलंक है जिससे तत्काल निजात पाने की जरुरत है। सामाजिक स्तर पर भी इसके अलग से कदम उठाने की आवश्यकता है इसके साथ- साथ माता पिता को भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाने की जरुरत है अन्यथा हमारे देश का भविष्य खराब होता रहेगा(^^)(^^)(^^)
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Explanation:
jab koi baccha Galt kam karta hai to unhe mafi di jati hai . kyuki bacha abhi Galt sahi ke bare main achi tarah nahi janata hai .
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