बिलिंग पर पाँव पड़ते ही लेखक को कैसा अनुभव हुआ ?
chapter- Bangahal ka tilsami ki sansar
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जिस दिन लेखक की पुस्तक की पहली प्रति बिकती है, तो लेखक को बड़ा सुख मिलता है। लेकिन पुस्तक का पूरा-पूरा मूल्य लेकर भी जब उसे किसी के हाथों सौंपता हूँ तो जाने क्यों लेखक के हाथ काँपने लगते हैं। मन अनायास ही गुनगुनाने लगता है-“अभी तक यह मेरी थी, अब तुम्हारी हुई। इसे सुख दोगे सुखी होगी, दुःख दोगे दुःखी होगी।”
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