बाल गोविंद भगत के गायन की विशेषता नहीं है उन पर बहुत मधुर था वह हमेशा कभी के भजन ही गाते थे गाते समय अपनी खडे भी बजाते थे उन्हें स्वर्ग के आरोपों का कोई ध्यान नहीं था
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बालगोबिन भगत अलौकिक संगीत के ऐसे गायक थे | कबीर के पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते थे | के समय भरी शाम को भी भगत का गायन अपनी दिनचर्या के अनुसार जारी रहता| भक्तिगीत को गाने में वे कभी थकान नहीं महसूस करते थे | इस प्रकार स्वरों की ताजगी भगत की गायन की एक प्रमुख विशेषता थी | भगत के गायन एक निश्चित ताल व गति थी | भगत के स्वर के आरोह के साथ श्रोताओं का मन भी ऊपर उठता चला जाता और लोग अपने तन-मन की सुध-बुध खोकर संगीत की स्वर लहरी में ही तल्लीन हो जाते | भगत के स्वर की तरंग लोगों के मन के तारों को झंकृत कर देती | ऐसा लगता जैसे संगीत में दूबाहुआ उनका एक-एक शब्द स्वर्ग की ओर जा रहा हो ।
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