Hindi, asked by DebtulyaChakraborty, 10 months ago

बालिका के प्रति समाज का दृष्टिकोण
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Answered by iamsadafhasan
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Hello

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जिले में 1,000 लड़कों पर लड़कियां

बेटियों की सुरक्षा के लिए महिलाओं को बिना किसी दबाव के आगे आकर कमान संभालनी होगी तथा बेटियों में जज्बा उत्पन्न करना होगा कि वे समाज की किसी भी बुराई से टकराने में सक्षम है। तभी हमारी सोच बेटियों के प्रति बदलती नजर आएगी। आज कई मामलों में महिला ही महिला की दुश्मन नजर आती है। -सुरेखा, शिक्षिका

समाज में सामाजिक बुराई दहेज प्रथा पर रोक लगे तो लिंगानुपात के अंतर को खत्म किया जा सकता है। समाज में इस कुप्रथा के चलते बेटियों को बोझ समझा जाता है। ऐसे में लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए तथा सरकार को भी इस कुप्रथा पर सख्ती से पाबंदी लगानी चाहिए। लोग बच्चों में ऐसे संस्कार डाले कि समाज की सोच में गुणात्मक बदलाव आने लगे। -पिंकी कानौडिया, शिक्षिका।

बिना शिक्षा के किसी भी बदलाव की कल्पना करना संभव नहीं है। इसी तरह कन्या के प्रति समाज की सार्थक सोच बनाने में अपने बच्चों को सुसंस्कारित बनाकर ही हम कोई बदलाव ला सकते हैं। ऐसे में सभी अभिभावकों को बचपन से ही अपने बच्चों में संस्कार डालने चाहिए। कि वे लड़कियों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार करें। -पूनम, शिक्षिका

बेटियां बेटों की अपेक्षा ज्यादा भावात्मक होती हैं। मायका हो, चाहे ससुराल दोनों जगह बेटियों की अहम भूमिका होती है। परिवार को चलाने के साथ-साथ वंश को भी आगे बढ़ाती हंै। इसलिए बेटी के जन्म को भी परिवार की खुशियों का हिस्सा मानना चाहिए। आज समय यही कहता है। लड़का-लड़की के बीच भेदभाव विकास नहीं दिला सकता। -शारदा शर्मा, शिक्षिका

बेटियों की सुरक्षा के साथ-साथ गर्भ में कन्या भ्रूण की हत्या समाज की ज्वलंत समस्या है।लड़कियां अपनी अस्मत बचाने के लिए संषर्घ कर रही है, उत्पीड़न रोकने के प्रयास सरासर बेमानी नजर रहे हैं। सरकार, समाज कानून को लड़कियों की सुरक्षा के विशेष प्रबंध करने होंगे, ताकि बिगड़ते हालातों में बेटियां अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सके। -अनिता गुप्ता, उप प्राचार्या

कनीना में 932: महिलाएं

802 लड़कियां

891 : महिलाएं

775 : लड़कियां

853 : लड़कियां

महेंद्रगढ़ शहर में

895 : महिलाएं

महेंद्रगढ़ . भारतीयस्कूल में आयोजित भास्कर की मुहिम मेरी बेटी मेरा गौरव में ग्रुप डिस्कशन करते समाज के बुद्धिजीवी।

सरकार तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा बेटी बचाओ अभियान के बावजूद गिरता लिंगानुपात चिंता का विषय है। सरकार समाज के साथ-साथ परिवार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की जोत जलानी होगी, ताकि समाज के माथे पर लगा यह कलंक धुल सके। आज जरुरी है अब आगे नहीं आए तो कल बहुत देर हो जाएगी। -रेणु, शिक्षिका।

समाज में महिलाओं पर अनेक तरह के अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए बेटियों को स्वावलंबी बनाया जाना आवश्यक है ताकि वे साहसी बनकर अपनी सुरक्षा स्वयं कर सके। माताओं को बेटियों में जुझारूपन पैदा करने की पहल करनी चाहिए। लड़कियां अपनी आत्मरक्षा के लिए खुद मजबूत बनें। तभी गलत व्यवहार से निपट सकते हैं। -मनोज, शिक्षिका।

प्रत्येक परिवार में बचपन से ही बेटों को ऐसे संस्कार देने चाहिए ताकि वे अपनी बहनों के साथ-साथ प्रत्येक लड़की का सम्मान करने की आदत डाले। लोगों को भी अपने बेटों की तरह बेटियों को भी अच्छी शिक्षा दिलवानी चाहिए ताकि वह अपने पैरों पर स्वयं खड़ी हो सके। -सुशीला, शिक्षिका।

बेटा-बेटी से ही एक पूरा परिवार बनता है। बेटी के जन्म को भी परिवार की खुशियों का हिस्सा मानना चाहिए। समाज के लोग इस तरह की सोच अपना लेंगे, उस स्थिति में लिंगानुपात में गिरते अंतर को रोका जा सकता है। हर पुरुष की सफलता के पीछे नारी का हाथ होता है यह पुरुष वर्ग नहीं भूले। -रेखा, शिक्षिका।

आधुनिक युग में तकनीकी संसाधनों के सही प्रयोग की जरूरत है। अल्ट्रासाउंड जैसी मशीनों का गलत प्रयोग भी जिले में कन्या भ्रूण की हत्या और लिंगानुपात में अंतर का मुख्य कारण है। महिलाओं को भी नारी जाति के सम्मान के लिए जागरूक होना चाहिए। समाज में कन्या के जन्म को लेकर विरोधाभास आज भी जारी है। कन्या के सम्मान की लड़ाई के लिए घर से ही पहल करनी होगी। -बनीता, शिक्षिका।

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