बाल लीला का भावार्थ
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भावार्थ:-
इस पद मे सूरदास जी ने वात्सल्य का अनोखा वर्णन किया है इस पद मे माता यशोदा कान्हा को चलाना सिखा रही है।कान्हा जब चलते समय धरती पर डगमग जाते है तो माता यशोदा उनको अपनी ऊँगली पकड़ा देती है जब वह अपने डगमगते चरणों से वह पृथ्वी पर चलते है तो माता यशोदा उनकी नजर उतारती है जिसके कारण वह आनंद से जी उठती है, वह आनंद का पूर्ण अनुभव करती है और अपने कुल देवता को मानने लगती है,वह नजर उतराते हुए अपने लाल की लम्बी आयु की प्रार्थना करती है वह कहती है कि भगवान मेरा लाल को लम्बी आयु मिले,वह बलराम को आवाज लगाकर कहती है कि अब तुम दोनों इसी आँगन मे मेरे सामने खेलों। इस पद मे सूरदास जी ने वात्सल्य, माता पुत्र के प्रेम को दिखाया हे कि माता अपने बालक को बिना किसी लोभ के प्रेम करती है सूरदास जी के लिए राम चन्द्र शुक्ल जी ने कहा है कि सूरदास वात्सल्य का कोना-कोना जानते हैं ।सूरदास जी कहते है कि मेरे स्वामी की यह लीला है की मेरे प्रभु की कृपा बढा गई है
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