Accountancy, asked by soniabasotia1, 6 months ago

बैलेंस शीट प्रॉब्लम फर्स्ट प्रिपरेशन ऑफ इन बैलेंस शीट विद द ग्रेट एंड​

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Answered by BRAINLYBILALFAROOQ
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6.1 बैलेंस शीट का समीकरण

कंपनी के P&L अकाउंट से हमें कंपनी के नफा-नुकसान के बारे में पता चलता है, जबकि बैलेंस शीट से हमें कंपनी के एसेट (Asset), लायबिलिटी (Laibility) और शेयरधारकों की हिस्सेदारी के बारे में पता चलता है। P&L स्टेटमेंट किसी एक वित्तीय वर्ष के बारे में जानकारी देता है इसलिए इसे एक अलग स्टेटमेंट माना जा सकता है। जबकि दूसरी तरफ बैलेंस शीट एक ऐसा स्टेटमेंट है जो कंपनी की शुरूआत से लेकर अबतक की स्थिति में आ रहे बदलाव को दिखलाता है। इससे ये पता चलता है कि कंपनी वित्तीय तौर पर किस तरह से  बदलती रही है। 

अमारा राजा बैटरीज लिमिटेड (ARBL) के बैलेंस शीट पर नज़र डालते हैं-

आप देख सकते हैं कि बैलेंस शीट में एसेट, लायबिलिटी और इक्विटी के बारे में जानकारी दी गई है। 

पिछले अध्याय में हमने एसेट्स के बारे में बात की थी। कंपनी के पास मूर्त परिसंपत्ति यानी टैंजिबल एसेट्स (Tangible assets) और अमूर्त परिसंपत्ति यानी इनटैंजिबल एसेट्स (Intangible assets) दोनों होते हैं। एसेट यानी परिसंपत्ति कोई एक ऐसी वस्तु होती है जो कंपनी के पास होती है और उसकी कंपनी के लिए कीमत होती है। आमतौर पर जिन एसेट के बारे में हम जानते हैं, वो है- फैक्ट्री, मशीन, नकद, ब्रांड, पेटेंट आदि। इनके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे। 

देनदारियां या लायबिलिटी कंपनी की उन जिम्मेदारियों को कहा जाता है जिसे उसे पूरा करना है। कंपनी ये जिम्मेदारियां इसलिए लेती हैं क्योंकि उसे लगता है कि भविष्य में उसे इनके द्वारा आर्थिक फायदा मिलेगा। साधारण भाषा में कहे तो ये एक तरह का कर्ज है, जिसे भविष्य में कंपनी को चुकाना होगा। देनदारियों के उदाहरण है- छोटी और बड़ी अवधि का कर्ज, किसी भी तरह का भुगतान आदि।  देनदारियां या लायबिलिटी 2 तरह की होती है- 1) करेंट लायबिलिटी 2) नॉन करेंट लायबिलिटी। इन पर हम आगे चर्चा करेंगे। 

आमतौर पर बैलेंस शीट में कंपनी की कुल परिसंपत्ती, कंपनी की कुल देनदारियों के बराबर होती है। 

एसेट=लायबिलिटी

Assets = Liabilities

इस समीकरण को बैलेंस शीट का समीकरण या अकाउंटिंग समीकरण कहते हैं। ये समीकरण बताता है कि बैलेंस शीट हमेशा बैलेंस्ड यानी संतुलित होनी चाहिए। यानी परिसंपत्ति और देनदारियां बराबर होनी चाहिए। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कंपनी हर एसेट यातो मालिक की पूंजी से खरीदती है या किसी लायबिलिटी से। 

एसेट और लायबिलिटी के बीच का अंतर होता है वो है मालिक की पूंजी, जिसे हम ओनर्स कैपिटल (Owners Capital) कहते हैं। इसे शेयर होल्डर्स इक्विटी या कंपनी की नेटवर्थ भी कहते हैं। समीकरण के रूप में देखें तो 

शेयर होल्डर्स इक्विटी = एसेट-लायबिलिटी

Share holders equity = Assets – Liabilities

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