बाल्यावस्था मे घटित घटनाओं का बालक के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है ।
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(4) जिस्बर्ट के शब्दों में -‘‘वातावरण वह हर वस्तु हैजो किसी अन्य वस्तु को घेरे हुए है और उस पर सीधेअपना प्रभाव डालती है।‘‘
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वातावरण व्यक्ति कोप्रभावित करने वाला तत्व है।
इसमें बाह्य तत्त्व आते हैं। यह किसी एक तत्त्व का नहींअपितु एक समूह तत्त्व का नाम है।
वातावरण व्यक्ति को उसके विकास में वांछित सहायताप्रदान करता है।
बाल-विकास पर वातावरण का प्रभाव
बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर भौगोलिक,सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ताहै। वंशानुक्रम के साथ-साथ वातावरण का भी प्रभावबालक के विकास पर पड़ता है।हम यहाँ इन पक्षों परविचार करेंगे, जो वातावरण से प्रभावित होते हैं-
(1) मानसिक विकास पर प्रभाव - गोर्डन का मत है कि उचित सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण न मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है। बालक का मानसिक विकास सिर्फ बुद्धि से ही निश्चित नहीं होता है। बल्कि उसमें बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क के सभी भाग एवं मानसिक क्रियाएँ आदि सम्मिलित होती है। अतः बालक वंश से कुछ लेकर उत्पन्न होता है, उसका विकास उचित वातावरण से ही हो सकता है। वातावरण से बालक की बौद्धिक क्षमता में तीव्रता आती है और मानसिक प्रक्रिया का सही विकास होता है।
(2) शारीरिक अन्तर पर प्रभाव -फ्रेंच बोन्स का मत है कि विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक अन्तर का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है। उन्होंने अनेक उदाहरणों से स्पष्ट किया है कि जो जपानी और यहूदी, अमरीका में अनेक पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं, उनकी लम्बाई भौगोलिक वातावरण के कारण बढ़ गयी है।
(3) व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव -कूले का मत है कि व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति का विकास आन्तरिक क्षमताओं का विकास करके और नवीनताओं को ग्रहण करके किया जाता है। इन दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त वातावरण को उपयोगी माना गया है। कूल महोदय ने यूरोप के साहित्यकारों का अध्ययन कर पाया कि उनके व्यक्तित्व का विकास स्वस्थ वातावरण में पालन-पोषण के द्वारा हुआ।
(4) शिक्षा पर प्रभाव -बालक की शिक्षा बुद्धि, मानसिक प्रक्रिया और सुन्दर वातावरण पर निर्भर करती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सामान्य विकास करना होता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में बालकों का सही विकास उपयुक्त शैक्षिक वातावरण पर ही निर्भर करता है। प्रायः यह देखने में आता है कि उच्च बुद्धि वाले बालक भी सही वातावरण के बिना उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
(5) सामाजिक गुणों का प्रभाव -बालक कासामाजीकरण उसके सामाजिक विकास पर निर्भर होताहै। समाज का वातावरण उसे सामाजिक गुण एवंविशेषताओं को धारण करने के लिए उन्मुख करता है।न्यूमैन,फ्रीमैन एवं होलिंजगर ने 20 जोड़े बालकों काअध्ययन किया। आपने जोड़े के एक बालक को गाँव मेंऔर दूसरे बालक को नगर में रखा। बड़े होने पर गाँव केबालक में अशिष्टता, चिन्ताएँ, भय, हीनता और कमबुद्धिमता सम्बन्धी आदि विशेषताएँ पायी गयीं, जबकिशहर के बालक में69 शिक्षित व्यवहार, चिन्तामुक्त,भयहीन एवं निडरता और बुद्धिमता सम्बन्धी विशेषताएँपायी गयीं। अतः स्पष्ट है कि वातावरण सामाजिक गुणोंपर भी प्रभाव डालता है।
(6) बालक पर बहुमुखी प्रभाव -वातावरण, बालकको शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मकआदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है। बालक कासर्वांगीण या बहुमुखी विकास तभी सम्भव है जब उसेअच्छे वातावरण में रखा जाए। यह वातावरण ऐसा हो,जिसमें बालक की वंशानुक्रमीय विशेषताओं का सहीप्रकाशन हो सके। भारत एवं अन्य देशों में जिन बालकों कोजंगली जानवर उठा ले गये और उनको मारने के स्थान परउनका पालन-पोषण किया। ऐसे बालकों का सम्पूर्णविकास जानवरों जैसा था, बाद में उनको मानववातावरण देकर सुधार लिया गया। अतः स्पष्ट है किवातावरण ही बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक होताहै।
बालक के विकास को प्रभावित करने वालेवातावरणीय कारक
बालक के विकास को प्रमुख रूप से आनुवांशिकता तथावातावरण प्रभावित करते हैं। इसी
प्रकार कुछ विभिन्न कारक और भी है, जो बालक केविकास में या तो बाधा पहुँचाते हैं या विकास को अग्रसरकरते हैं। ऐसे प्रभावी कारक निम्नलिखित है-
(1) बालकों के लालन-पालन या संरक्षण की दशाएँबालक के विकास पर उसके लालन-पालन तथा माता-पिता की आर्थिक स्थितियाँ प्रभाव डालती हैं। परिवार कीपरिस्थितियों तथा दशाओं का बालक के विकास पर सदैवप्रभाव पड़ता है। बालक के लालन-पालन में परिवार काअत्यधिक महत्व होता है। बालक के जन्म से किशोरावस्थातक उसका विकास परिवार ही करता है। स्नेह,सहिष्णुता, सेवा, त्याग, आज्ञापालन एवं सदाचारआदि का पाठ
परिवार से ही मिलता है। परिवार मानव के लिये एकअमूल्य संस्था है।
(1) रूसो के अनुसार -‘‘बालक की शिक्षा में परिवारका महत्वपूर्ण स्थान है। परिवार ही बालक को सर्वोत्तमशिक्षा दे सकता है। यह एक ऐसी संस्था है, जो मूलरूपसे प्राकृतिक है।‘‘
(2) फ्राॅवेल के अनुसार -‘‘फ्राॅबेल ने घर कोमहत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनका यह कथन-माताएँ आदर्शअध्यापिकाएँ हैं और घर द्वारा दी जाने वाली अनौपचारिकशिक्षा ही सबसे अधिक प्रभावशाली और स्वाभाविकहै।‘‘70
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बालक के विकास मेंपरिवार एक अहम संस्था की
भूमिका अदा करता है
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वातावरण व्यक्ति कोप्रभावित करने वाला तत्व है।
इसमें बाह्य तत्त्व आते हैं। यह किसी एक तत्त्व का नहींअपितु एक समूह तत्त्व का नाम है।
वातावरण व्यक्ति को उसके विकास में वांछित सहायताप्रदान करता है।
बाल-विकास पर वातावरण का प्रभाव
बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर भौगोलिक,सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ताहै। वंशानुक्रम के साथ-साथ वातावरण का भी प्रभावबालक के विकास पर पड़ता है।हम यहाँ इन पक्षों परविचार करेंगे, जो वातावरण से प्रभावित होते हैं-
(1) मानसिक विकास पर प्रभाव - गोर्डन का मत है कि उचित सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण न मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है। बालक का मानसिक विकास सिर्फ बुद्धि से ही निश्चित नहीं होता है। बल्कि उसमें बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क के सभी भाग एवं मानसिक क्रियाएँ आदि सम्मिलित होती है। अतः बालक वंश से कुछ लेकर उत्पन्न होता है, उसका विकास उचित वातावरण से ही हो सकता है। वातावरण से बालक की बौद्धिक क्षमता में तीव्रता आती है और मानसिक प्रक्रिया का सही विकास होता है।
(2) शारीरिक अन्तर पर प्रभाव -फ्रेंच बोन्स का मत है कि विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक अन्तर का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है। उन्होंने अनेक उदाहरणों से स्पष्ट किया है कि जो जपानी और यहूदी, अमरीका में अनेक पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं, उनकी लम्बाई भौगोलिक वातावरण के कारण बढ़ गयी है।
(3) व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव -कूले का मत है कि व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति का विकास आन्तरिक क्षमताओं का विकास करके और नवीनताओं को ग्रहण करके किया जाता है। इन दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त वातावरण को उपयोगी माना गया है। कूल महोदय ने यूरोप के साहित्यकारों का अध्ययन कर पाया कि उनके व्यक्तित्व का विकास स्वस्थ वातावरण में पालन-पोषण के द्वारा हुआ।
(4) शिक्षा पर प्रभाव -बालक की शिक्षा बुद्धि, मानसिक प्रक्रिया और सुन्दर वातावरण पर निर्भर करती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सामान्य विकास करना होता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में बालकों का सही विकास उपयुक्त शैक्षिक वातावरण पर ही निर्भर करता है। प्रायः यह देखने में आता है कि उच्च बुद्धि वाले बालक भी सही वातावरण के बिना उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
(5) सामाजिक गुणों का प्रभाव -बालक कासामाजीकरण उसके सामाजिक विकास पर निर्भर होताहै। समाज का वातावरण उसे सामाजिक गुण एवंविशेषताओं को धारण करने के लिए उन्मुख करता है।न्यूमैन,फ्रीमैन एवं होलिंजगर ने 20 जोड़े बालकों काअध्ययन किया। आपने जोड़े के एक बालक को गाँव मेंऔर दूसरे बालक को नगर में रखा। बड़े होने पर गाँव केबालक में अशिष्टता, चिन्ताएँ, भय, हीनता और कमबुद्धिमता सम्बन्धी आदि विशेषताएँ पायी गयीं, जबकिशहर के बालक में69 शिक्षित व्यवहार, चिन्तामुक्त,भयहीन एवं निडरता और बुद्धिमता सम्बन्धी विशेषताएँपायी गयीं। अतः स्पष्ट है कि वातावरण सामाजिक गुणोंपर भी प्रभाव डालता है।
(6) बालक पर बहुमुखी प्रभाव -वातावरण, बालकको शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मकआदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है। बालक कासर्वांगीण या बहुमुखी विकास तभी सम्भव है जब उसेअच्छे वातावरण में रखा जाए। यह वातावरण ऐसा हो,जिसमें बालक की वंशानुक्रमीय विशेषताओं का सहीप्रकाशन हो सके। भारत एवं अन्य देशों में जिन बालकों कोजंगली जानवर उठा ले गये और उनको मारने के स्थान परउनका पालन-पोषण किया। ऐसे बालकों का सम्पूर्णविकास जानवरों जैसा था, बाद में उनको मानववातावरण देकर सुधार लिया गया। अतः स्पष्ट है किवातावरण ही बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक होताहै।
बालक के विकास को प्रभावित करने वालेवातावरणीय कारक
बालक के विकास को प्रमुख रूप से आनुवांशिकता तथावातावरण प्रभावित करते हैं। इसी
प्रकार कुछ विभिन्न कारक और भी है, जो बालक केविकास में या तो बाधा पहुँचाते हैं या विकास को अग्रसरकरते हैं। ऐसे प्रभावी कारक निम्नलिखित है-
(1) बालकों के लालन-पालन या संरक्षण की दशाएँबालक के विकास पर उसके लालन-पालन तथा माता-पिता की आर्थिक स्थितियाँ प्रभाव डालती हैं। परिवार कीपरिस्थितियों तथा दशाओं का बालक के विकास पर सदैवप्रभाव पड़ता है। बालक के लालन-पालन में परिवार काअत्यधिक महत्व होता है। बालक के जन्म से किशोरावस्थातक उसका विकास परिवार ही करता है। स्नेह,सहिष्णुता, सेवा, त्याग, आज्ञापालन एवं सदाचारआदि का पाठ
परिवार से ही मिलता है। परिवार मानव के लिये एकअमूल्य संस्था है।
(1) रूसो के अनुसार -‘‘बालक की शिक्षा में परिवारका महत्वपूर्ण स्थान है। परिवार ही बालक को सर्वोत्तमशिक्षा दे सकता है। यह एक ऐसी संस्था है, जो मूलरूपसे प्राकृतिक है।‘‘
(2) फ्राॅवेल के अनुसार -‘‘फ्राॅबेल ने घर कोमहत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनका यह कथन-माताएँ आदर्शअध्यापिकाएँ हैं और घर द्वारा दी जाने वाली अनौपचारिकशिक्षा ही सबसे अधिक प्रभावशाली और स्वाभाविकहै।‘‘70
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बालक के विकास मेंपरिवार एक अहम संस्था की
भूमिका अदा करता है
shivanshu14:
so sorry for it
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What is the question
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