बाल्यकाल में शिक्षा
(Education during Childhood)
बाल्याकाल को मानव के सम्पूर्ण जीवन की आधारशीला स्वीकार किया जाता है। बाल्यकाल
के दौरान ही व्यक्ति के आधारभूत दृष्टिकोणों, मूल्यों तथा आदर्श का काफी सीमा तक
निर्धारण हो जाता है। अतः आवश्यक है कि बाल्यकाल में बालक की विकासात्मक
विशेषताओं को ध्यान में रखकर ही उसकी शिक्षा व्यवस्था की जाए। बाल्यकाल में बालक
बालिकाओं की शिक्षा व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
Answers
Answer:
स्किनर के अनुसार- "विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई परिवर्तन आकस्मिक नहीं होता।" सोरेनसन के अनुसार- "वृद्धि से आशय शरीर तथा शारीरिक अंगों में भार तथा आकार की दृष्टि से वृद्धि होना है, ऐसी वृद्धि जिसका मापन संभव हो।" विकास की प्रक्रिया पर कोई एक घटक प्रभाव नहीं डालता, कोई एक अभिकरण उत्तरदाई नहीं होता, अपितु अनेक कारक तथा अनेक अभिकरण बालक के विकास में योगदान देते हैं। घर, विद्यालय तथा समुदाय भी ऐसे ही अभिकरण है जिसका उपयोग बालक के विकास में मनोवैज्ञानिक रूप से होना चाहिए।परिवार, बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है। यह बालक में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य, बालक के विकास में योगदान देता है। यंग एवं मैक (Young & Mack) के अनुसार- " परिवार सबसे पुराना और मौलिक मानव समूह है। पारिवारिक ढांचे का विशिष्ट रूप एक समाज के रूप में समाज में विभिन्न हो सकता है और होता है पर सब जगह परिवार के मुख्य कार्य हैं- बच्चे का पालन करना, उसे समाज की संस्कृति से परिचित कराना, सारांश में उसका सामाजिकरण करना।"
परिवार या घर समाज की न्यूनतम समूह इकाई है। इसमें पति-पत्नी, बच्चे तथा अन्य आश्रित व्यक्ति सम्मिलित हैं। इसका मुख्य आधार रक्त संबंध है। क्लेयर ने परिवार की परिभाषा देते हुए कहा है- " परिवार, संबंधों की वह व्यवस्था है जो माता-पिता तथा संतानों के मध्य पाई जाती है|" ("By family women a system of relationship existing between parents and children.")
बालक के विकास पर घर का प्रभाव
(Influence of home on child development)
मांटेसरी (Montessori) ने बालकों के विकास के लिए परिवार के वातावरण तथा परिस्थिति को महत्वपूर्ण माना है। इसीलिए उन्होंने विद्यालय को बचपन का घर (House of childhood) कहा है। रेमंट के अनुसार- ”घर ही वह स्थान है जहां वे महान गुण उत्पन्न होते हैं जिन की सामान्य विशेषता सहानुभूति है।” घर में घनिष्ठ प्रेम की भावनाओं का विकास होता है। यही बालक उदारता -अनुदारता, निस्वार्थ और स्वार्थ, न्याय और अन्याय, सत्य और असत्य, परिश्रम और आलस्य में अंतर सीखता है।”
बालक के जीवन पर घर का प्रभाव इस प्रकार पड़ता है:-
घर बालक की प्रथम पाठशाला है। वह घर में सभी गुण सकता है। जिसकी पाठशाला में आवश्यकता होती है।
बालकों को घर पर नैतिकता एवं सामाजिकता का प्रशिक्षण मिलता है।
सामाजिक तथा अनुकूलन के गुण विकसित करता है।
सामाजिक व्यवहार अनुकरण करता है।
सामाजिक,नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करने में घर का योगदान मुख्य है।
उत्तम आदतों एवं चरित्र के विकास में योग देता है।
रुचि अभिरुचि तथा प्रवृत्तियों का विकास होता है।
बालक की व्यक्तिता का विकास होता है।
प्रेम की शिक्षा मिलती है।
सहयोग, परोपकार, सहिष्णुता, कर्तव्य पालन के गुण विकसित होते हैं।
घर बालक को समाज में व्यवहार करने की शिक्षा देता है। प्लेटो के अनुसार:- “यदि आप चाहते हैं कि बालक सुंदर वस्तुओं के प्रशंसा और निर्माण करे तो उसके चारों और सुंदर वस्तुएँ प्रस्तुत करें।”