Hindi, asked by sarikaagarwal700, 1 month ago

ब लए) शादीराम को यह आशा । बंद कर दिए। वे उन हतभाग्य मनुष्यों में से थे, जो संसार में असफल और केवल असफल रहने के लिए ही उत्पन सोरेको हाथ लगातेथे वह भी मिट्टी हो जाता था। उनकी ऐसी धारणा ही नहीं, पक्का विश्वास था कि यह प्रयत्न कभी भी सफल न होगा। परंतु लाला सदानंद के आग्रह पर दिनभर बैठकर तस्वीरें छाँटते रहे। न मन में लगन थी, न दिल * चाच। परंतु लाला सदानंद को चात दाल न सके। शाम को देखा तो दो सौ, एक-से-एक बढ़िया चित्र हैं। उस समय वे उन्हें देखकर स्वयं सक्कल पड़े। उनके मुख पर आनंद की आभा नृत्य करने लगी। जैसे फेल हो जाने वाले विद्यार्थी को से के पश्चात पास होने का अचानक तार मिल गया हो; उसे विश्वास नहीं होता, वह चारों तरफ प्रफुल्लता और विस्मय से परे लगता है, वैसी अवस्था शादीराम की थी। वे सफलता के विचार से प्रसन्न हो रहे थे जैसे सफलता प्राप्त कर चुके हो । लेकिन वह अभी कोसों दूर थी। लेकिन सदानंद को आशा थी। लाला सदानंद ने चित्रों को अलबम में लगाया और कुछ अम्मकोर के समाचार पत्रों में विज्ञापन दे दिया। अब पंडित शादीराम हर समय डाकिया की प्रतीक्षा करते थे। इस प्रकार एक महीना बीत गया परंतु कोई पत्र नहीं आया। पंडित शादीराम सर्वथा निराश हो गए। परंतु फिर भी काम को सफाया का विचार आ जाता था। जिस प्रकार अँधेरे में जुगनू की चमक निराश हृदयों के लिए कैसी जीवनदायिनी 2. परक-निजमालिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1.पडित शादीराम को क्या विश्वास नहीं हो रहा था और क्यों? 2. सामा सदानंद ने उन्हें क्या विश्वास दिलाया? ३. पहित शादीराम की आर्थिक स्थिति कैसी थी? ३. पडित शादीराम आशा-निराशा के बीच कैसे झूल रहे थे? 5समाचार-पत्रों में क्यों विज्ञापन दिया गया था? प्रश्न संख्या 4 पर आधारित पूछे जाने वाले व्याकरण संबंधी प्रश्नअपठित गद्यांश पंडित साधु राम को यह आशा ना था कि कोई लो में हीरे मिल जाएगा वह निराशा में आशा के द्वार चारों ओर से बंद कर दिए वह उन्हात भाग्य मनुष्य में से थे जो संसार में असफल और केवल असफल रहने के ​

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Answered by sreedevikommula
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