बालगोबिन् भगत के गीत संगीत को आप संगीत साधना कहेंगे या भक्ति भावना ? स्पष्ट कीजिए ।
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बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया, जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह ! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किन्तु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं।
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- बाल गोविंद भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनके इकलौते बेटे की मृत्यु हो गई। उन्होंने बड़े प्यार से अपने बेटे की शादी की। घर में एक सुंदर व सुशील बहू आई , जिसने भगत को दुनियादारी और घर गृहस्थी के झंझट से मुक्त कर दिया।
- इकलौते बेटे की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने मृत बेटे की देह को आंगन में एक चटाई पर लेटा कर उसे एक सफेद कपड़े से ढँक दिया और उसके ऊपर कुछ फूल और तुलसीदल बिखरा दिए और सिर के सामने एक दीपक जला दिया। फिर उसके सामने ही जमीन पर आसन लगा गीत गाते रहे , वह भी पूरी तल्लीनता के साथ।
- उनकी बहू अपने पति की मृत्यु पर काफी दुखी थी इसीलिए खूब रो रही थी। लेकिन बालगोबिन भगत पूरी तल्लीनता के साथ गाना गाए जा रहे थे और अपनी बहू को भी रोने के बजाय उत्सव मनाने को कह रहे थे। वो कह रहे थे कि बिरहिनी आत्मा आज परमात्मा से जा मिली है। और यह सब आनंद की बात है। इसीलिए रोने के बजाय उत्सव मनाना चाहिए।
- बेटे की चिता को आग भी उन्होंने अपनी बहू से ही लगवाई और श्राद्ध की अवधि पूरी होते ही बहू के भाई को बुलाकर बहू को उसके साथ भेज दिया और साथ में यह भी आदेश दिया कि बहू की दूसरी शादी कर देना।
#SPJ2
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