बालक एक सच्ची मिट्टी की तरह होता है उसका निर्माण उसके चारों ओर का प्रवेश करता है प्राकृतिक सामाजिक आर्थिक राजनीतिक धार्मिक पारिवारिक एवं स्कूली वातावरण के संदर्भ में उदाहरण देकर एक निबंध
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निबंध
बालक एक कच्ची मिट्टी की तरह है। उसका निर्माण चारों ओर का पर्यावरण करता है, प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पारिवारिक एवं स्कूली वातावरण का संदर्भ में एक एक उदाहरण देकर एक निबंध...
बालक एक कच्ची मिट्टी की तरह होता है, उसका निर्माण उसके चारों तरफ का पर्यावरण यानि वातारण ही करता है। वह जिस वातावरण में रहता है चाहे वह प्राकृतिक वातावरण हो, सामाजिक वातावरण हो आर्थिक वातावरण हो या राजनीतिक अथवा धार्मिक वातावरण हो, पारिवारिक वातावरण हो या विद्यालयी वातावरण हो, सब हर तरह के वातावरण उसके विकास पर प्रभाव डालता है। बालक में जो भी गुण विकसित होते हैं उसके जैसे विचार बनते हैं, उसके मन पर अपने आसपास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण के लिये बालक कच्ची मिट्टी के समान है और उसके आसपास का वातावरण कुम्हार का कार्य करता है। जिस तरह और बाद में बदल देता है उसके पास में बदल देता है इसी तरह बालक को
जिस तरह कुम्हार गीली मिट्टी को अपनी कला से एक आकार देकर किसी उपयोगी पात्र में बदल देता है, उसी तरह बालक भी एक गीली मिट्टी के समान होता है, जिसे उसके आसपास का वातावरण रूपी कुम्हार सही आकार देकर एक उचित्र पात्र में बदल देता हैष इसीलिए बालक के आसपास का वातावरण कैसा भी हो उसके विकास का उसपर गहरा प्रभाव पड़ता है।
बालक के जीवन पर उसके पारिवारिक वातावरण का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि बालक का पारिवारिक वातावरण सही है तो बालक में सर्वांगण विकास होना निश्चित है। बालक का पारिवारिक वातावरण सही नही है, अन्य वातावरण कितने भी अच्छे हों बालक का सर्वांगीण विकास नही हो सकता। इसलिये बालक के परिवार का वातावरण अच्छा होना बेहद जरूरी है, क्योंकि बालक के परिवार यदि संस्कारी है, तो बालक मे भी संस्कार विकसित होंगे। अतः स्पष्ट ही कि यदि बालक के आसपास का वातावरण विशेषकर उसके परिवार का वातावरण से उसके विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
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Explanation:
बालपन मानव का निर्माण काल होता है। यह अवस्था उस कोमल पौधे के समान होती हैजा विकास की
और बढ़ रहा होता है और जिसको अपनी इच्छानुसार चाहे जिधर मोड़ा भी जा सकता है। एक बालक एक साल
अनुष्य तभी बन सकता है जब उसको नौंव सुदृढ़ होगी और वह तभी होगी जब उस बालक की परवरिश एक स्वय
वातावरण में होगी। चारों ओर का वातावरण बालक के दिमाग पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है। वह वही सीखता है
जो अपने आस-पास देखता है, और ऐसे ही उसके जीवन की नींव पड़नी प्रारम्भ होती है।
प्राचीन काल में बालक अपने ब्रह्मचर्य-काल में अपने गुरु से खुले जंगलों में गुरुकुल में पढ़ते थे जहाँ
आस-पास हर जगह हरियाली ही हरियाली होती थी। वे बालक प्रकृति के बहुत समीप होते थे और प्रकृति उनर्य
नहीन भावनाओं को जन्म देती थी। वे ताज़ी हवा में साँस लेते थे और ताजे फल-सब्ज़ियाँ खाते थे, इसलिए सदा
इष्ट-पुष्ट रहते थे। परन्तु आजकल के बालक, जो कि शहरों में रहते हैं, प्रकृति के स्वच्छ वातावरण का आनन्द नहीं
ले पाते और इसी कारण से वे इतने स्वस्थ नहीं हैं-नही सोच-विचार में और न ही शरीर में।
स्वस्थ सामाजिक वातावरण एक बालक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जिस समाज में वह रहता है, बड़ा होता
है, उसका प्रभाव उसके विकास पर पड़ता है। स्वार्थी और लालची व्यक्तियों के बीच में रहकर बालक स्वार्थी तथा
लालची बनता है। परोपकारी तथा दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले व्यक्तियों के समाज में रहकर उसमें भी
जैसी ही भावनाएँ जन्म लेती है। अत: अच्छा नागरिक व जिम्मेदार व्यक्ति बनने के लिए उसे उचित सामाजिक वातावरण
की आवश्यकता होती है।
परिवार का माहौल बालक के मन पर गहरा प्रभाव डालता है। अगर परिवार का माहौल स्वस्थ व स्वच्छ है
अर्थात् परिवार में लड़ाई-झगड़े नहीं होते, माँ-बाप बच्चे का ध्यान रखते हैं, परिवार के सभी सदस्यों में एक दूसरे की
सहायता करने की भावना है और उनका आपस में प्रेम है तो बालक पर भी अच्छा असर पड़ेगा। वह दूसरों की
सहायता करने के लिए तत्पर रहेगा। वह हर जगह हँसी-खुशी और शांति बनाए रखना चाहेगा तथा दूसरों की भावनाओं
का आदर करेगा। परंतु अगर बालक की पारिवारिक स्थिति ही ठीक नहीं होगी तो वह क्या करेगा? अर्थात् उसके
माँ बाप हर समय लड़ते रहते हों, अपने बच्चों को वे हर समय बिना वजह डाँटते-फटकारते रहते हों तथा दूसरों की
भावनाओं का आदर न करते हों तो उस परिवार का बालक चिड़चिड़ा, स्वार्थी तथा प्रेमहीन होगा और उसमें दूसरों की
सहायता करने की भावना भी नहीं होगी।
परिवार की आर्थिक स्थिति भी बालक के मन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। जिस घर की आर्थिक
स्थिति मजबूत होती है वहाँ बालक को हर सुख-सुविधा प्राप्त होती है। इस स्थिति में यह सम्भव है कि बालक मेहनत
करने का मूल्य न समझ पाए जबकि एक कमज़ोर आर्थिक स्थिति वाले घर में पलने वाले बालक को अपनी प्रत्येक
इच्छा को साकार करने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है जिससे वह मेहनत का मूल्य समझ पाता है। अतः सम्पन्न
परिवार के अभिभावकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि बालक परिश्रम के महत्त्व को समझे जिससे उसे अपने जीवन
में कभी असफलता की मार न खानी पड़े।
धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा एक बालक के स्वभाव का निर्माण करने में सबसे अहम् भूमिका निभाती है। यदि
बालक को सही धार्मिक शिक्षा दी जाए, उसमें मानवता की सेवा, दया, प्रेम, सहानुभूति जैसे गुण पैदा किए जाएँ तो
उसमे सर्वधर्म समभाव उत्पन्न होगा अर्थात् वह सब धर्मों को समान समझते हुए उनका आदर करेगा।
परिवार के पश्चात् स्कूल के वातावरण का बालक के मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अगर स्कूल का
वातावरण स्वस्थ है तो बालक का स्वभाव भी अच्छा होगा। यदि बालक के मित्रों में दूसरों की सहायता करने की
भावना है तो वह भी उन जैसा बन जाएगा। अगर उसके अध्यापक अच्छे हैं तो वह उनका आदर करना सीखेगा और
इस प्रकार उसके भीतर अच्छे संस्कार जन्म लेंगे, परन्तु अगर बालक की मित्रता बिगड़े हुए बच्चों के साथ है तो वह
भी बिगड़ जाएगा। वह कभी भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे सकेगा। वह अपने अध्यापकों का कभी सम्मान नहीं कर
पाएगा। वह जीवन-मूल्यों का महत्त्व ही नहीं समझ सकेगा, फिर एक सक्षम मनुष्य कैसे बनेगा ?
अन्ततः राजनीतिक वातावरण भी एक बालक को ढालने में अहम् स्थान रखता है। आजकल का राजनीतिक
माहौल बहुत ही अस्वस्थ है। जहाँ दृष्टि डालें वहीं पर भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है। समाचार-पत्र व टी.वी. के अधिकांश
समाचार हिंसा, लूटपाट व भ्रष्टाचार से ही सम्बन्धित होते हैं जिन्हें बालक अपनी आँखों से देखता है, कानों से सुनता
है तथा अल्प बुद्धि से सोचता है। ये सभी बातें उसकी विचारधारा पर प्रभाव डालती हैं।
प्रत्येक बालक इस विश्व का भविष्य है। उसे भी एक दिन अपनी ज़िम्मेदारियाँ सँभालनी हैं इसलिए प्रत्येक
बालक के माँ-बाप, अध्यापकों तथा शुभचिंतकों का यह कर्त्तव्य है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि घर तथा स्कूल
का वातावरण स्वस्थ हो ताकि उनके जीवन की नींव सुदृढ़ हो और आगे जाकर वे जीवन में नई ऊँचाइयाँ छू सकें
तथा अपने देश को उच्चतम शिखर पर ले जाने वाले पूर्ण व्यक्तित्व के स्वामी सिद्ध हो सकें।